बुधवार, 28 अक्तूबर 2009

क्या दुष्कर्म, हत्या जघन्यतम अपराध नहीं?

महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों में कमी तो आ नहीं रही है अलबत्ता कठोर सजा मिलने की अपेक्षा सजा कम जरूर हो रही है। आज ही यह खबर छपी है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने हत्या, बलात्कार, हत्या के प्रयास, और लूटपाट करने वाले एक नौकर को निचली अदालत से मिली मौत की सजा को जघन्यतम अपराध न होने के कारण 25 साल के सश्रम कारावास में तब्दील कर दिया गया है।

क्या माननीय हाई कोर्ट इस पर प्रकाश डाल सकता है कि जघन्यतम अपराध कौन से हैं? एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म, 4 साल के छोटे से बच्चे की हत्या क्या जघन्य अपराध नहीं है। हां इससे ज्यादा जघन्य ये होता कि जब दुष्कर्म के बाद उस लड़की की हत्या कर दी जाती और फिर छोटी बेटी के साथ भी यही होता। क्या न्यायाधीश महोदय की संवेदनाएं शून्य हो गई हैं? या अपराधी के वकील के अपनी कोई बेटी या बेटा नहीं है। क्या वकील को उन मां-पिता की आंखों का दर्द या आंसू नहीं दिखे। जिसने अपना इकलौता बेटा खोया है, अपनी बेटी के जीबन के साथ खिलवाड़ देखा है उनके या अन्य किसी के लिए भी इससे ज्यादा जघन्य और क्या हो सकता है? वकील साहब ने तो मोटी रकम ली होगी। मगर ऊपर की अदालत में ये रकम काम नहीं आएगी और न वो घर, न बीवी-बच्चे जिनके लिए ये सब किया और खुद के लिए भी किया है तो भी इसकी सजा स्वयं भुगतनी होगी। एक लड़के ने जघन्य अपराध किया उलकी सजा दिलवाकर कम से कम उन माता-पिता को थोड़ी शांति तो दे दी होती कि उनके परिवार को बिखेरने वाले को मौत की सजा मिली। वो केवल यहां की अदालत में बचा है ईश्वर की अदालत में उसे कौन बचाएगा? अगर उसे मौत की सजा मिलती तो शायद कोई तो इस तरह का अपराध करने से पहले सोचता। दुष्कर्म जैसे अपराध के लिए तो केवल एक ही सजा होनी चाहिए मौत की सजा. ताकि नारी कि इज्जत को खिलौना समझने वाले ये जाने कि वो भी बचेंगे नहीं। मैं इस फैसले को जरूर पढ़ूंगी।

यही नहीं मणिपुरी युवती की हत्या का केस भी इसी दिशा की तरफ जा रहा है, उसे भी थोड़ी सी सजा मिल जाएगी क्योंकि अभी से अखबार में ये आने लगा कि अपराधी आई. आई. टी. छात्र पुष्पम का व्यवहार ठीक नहीं था और इसी का लाभ उठाकर वकील उसे बचाएगा, कोर्ट थोड़ी सजा देकर मुक्त हो जाएगा लेकिन उसके घरवालों के बारे में कोई नहीं सोचेगा और जेल से बाहर आकर वो अपराधी फिर किसी की इज्जत के साथ खिलवाड़ करेगा और हत्या करेगा।

राजा-महाराजाओं के समय ठीक होता था जो कठोर दंड होते थे। अमानवीय थे लेकिन फिर किसी और की वो अपराध दोबारा करने की हिम्मत नहीं होती थी। अब जरूरत ऐसे ही फैसलों की है जिससे समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराधों पर अंकुश लग सके। आज 6 माह की, ढाई साल, 8 साल की बच्ची, किशोरी, युवा, प्रौढ़ा यहां तक वृद्धा तक सुरक्षित नहीं है। जिस घर में बेटी होती है उस घर की मां की, महिलाओं की नींद उड़ी रहती है। बेटी की वजह से नहीं बल्कि उसकी सुरक्षा को लेकर और समाज में पल रहे दरिंदों को लेकर।

सोमवार, 26 अक्तूबर 2009

`सच का सामना' या व्यक्ति को नग्न करने खेल

मैं अपने नए ब्लाग शिकंजी के साथ अपने ब्लाग मित्रों के बीच हूं । इसमें आपको कुछ मीठी-कुछ खट्टी टिप्पणियों के साथ समाज की वास्तविकता भी देखने को मिलेगी। हौसलाफजाही के रूप में आप की राय व टिप्पणियां भी मिलती रहीं तो मनोबल तो बढ़ेगा साथ ही मैं और भी बेहतर कर सकूंगी।

`सच का सामना', आपने ठीक समझा यह उसी कार्यक्रम के बारे में है जो स्टार प्लस पर प्रसारित हुआ था। उसकी आखिरी कड़ी के दो-तीन दिन बाद आपकी अदालत में रजत शर्मा ने सच का सामना के प्रस्तुतकर्ता राजीव खंडेलवाल, प्रश्न तैयार करने वाले सिद्धार्थ बसु और कुछ प्रतिभागियों को बुलाया था। उसके बाद मैने यह लेख लिखा था और 29 सितम्बर को दिल्ली के एक प्रतिष्ठित हिंदी अखबार को ई.मेल द्वारा भेजा था, 24 अक्टूबर को जब मैने उनसे फोन पर बात की तो उनका जवाब था कि मेरे पास रोज इतने लेख आते हैं सबको देखना बहुत मुश्किल है। इसके लिए तो एक आदमी रखना पड़ेगा।

अखबार से पाठक नहीं होते बल्कि पाठकों से अखबार होता है। ना तो मै अखबार का नाम लेना चाहती नहीं व्यक्ति विशेष का। मैं हिंदी अखबारों में चल रही अव्यवस्था के खिलाफ बताना चाह रही हूं। मैंने भी 11-12 साल अखबार में काम किया है। तब शायद इतनी खराब व्यवस्था नहीं थी, पाठकों से इस तरह बात नहीं की जाती थी। आज क्या वजह है जो पाठकों से इस तरह से बात की जाती है कि इसके लिए हमें एक आदमी रखना पड़ेगा। यह समस्या पाठकों की नहीं है अखबार की है, वो कितने व्यक्ति रखे। लेखों की भी श्रेणी होती है जिनमें कुछ सम-सामयिक होते हैं और कुछ समय बाद उनकी उपयोगिता ही खत्म हो जाती है। ऐसे लेखों को पहले छापना होता है या उपयोगी न होने पर वापस कर दिया जाता है। अब तो ई.मेल का युग है कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। लिखने वाले हजारों होते हैं अखबार को अनेक लेख मिलते हैं लेकिन लिखने वाले के लिए उसका अपना ही लेख होता है जिसमें उसकी भावनाएं होती हैं जो वह बांटना चाहता है। उम्मूद है अखबार में काम करने वाले पत्रकार भाई पाठकों की भावनाओं का ध्यान रखेंगे। वह लेख ब्लाग के पाठकों के लिए प्रस्तुत है।

सच का सामना

जिंदगी जीने का सबका अपना अंदाज होता है। अंदाज के साथ उसका अधिकार भी है ऐसे में किसी के भी अधिकार या अंदाज पर दखल देना कहां तक उचित है या उचित है भी या नहीं। जहां तक मैं समझती हूं और शायद ठीक ही समझती हूं किसी भी व्यक्ति के पास अपने जीवन के अलावा कुछ भी निजी नहीं है। उस पर भी मीडिया सेंध मार चुका है। बची-खुची कसर हम लोग आपस में ही टांग खीचकर पूरी कर लेते हैं। मुद्दे पैदा करना और उलटी दिशा में चलना हमारी फितरत बन चुकी है। किसी का सही या गलत होना या हमारी सोच में सही-गलत का फैसला दोनों बातें अलग हैं। गलत को तो गलत ठहराया ही जाना चाहिए लेकिन दुख वहां होता है जहां केवल अड़ंगे लगाने के लिए,टांग खीचने के लिए सही को भी गलत ठहराया जाता है। अभी टी.वी.के स्टार प्लस चैनल पर एक कार्यक्रम प्रसारित हुआ `सच का सामना। इसके साथ ही शुरू हुई मुद्दों की श्रंखला। पहला मुद्दा सामाजिक मान्यता बना। हम किन सामाजिक मान्यताओं की बात करते हैं जो हमने अपनी सोच और फायदे के अनुसार निर्धारित की है। इधर आने वाले सभी सीरियलों में किन सामाजिक मान्यताओं का ध्यान रखा जाता है। विवाह पूर्व व विवाह के बाद संबंधों को दिखाना आम बात है। शादी के कुछ वर्षों कहीं से एक लड़का या लड़की का आना और घर की शालीन व प्रिय बहू का बेटा या बेटी होने का दावा करना, जो बाद में सही निकलता है। शादी के बाद प्रेम संबंधों का होना कुछ नया नहीं। रजत शर्मा ने भी सच का सामना को लेकर`आपकी अदालत में यही मुद्दे बार-बार उठाए। बच्चा गिराना, गर्भवती होना जैसे शब्दों को और उनके बारे में आज छोटे-छोटे बच्चे भी जानते हैं। छठी-सातवीं में पढ़ने वाले बच्चे सेक्स करते हैं। टीवी पर दिखाई एक रिपोर्ट में जब लड़कों से पूछा गया कि आप लोग सैक्स करतें हैं तो उनका जवाब था`हां, जब ये पूछा गया कि क्या लड़कियों के साथ आप जबरदस्ती करते हैं या बहलाते-फुसलाते हैं। तो उन्होने कहा वो अपनी मर्जी से करती हैं हम जबरदस्ती नहीं करते और लड़कियों से पूछने पर उन्होंने धड़ल्ले से कहा जब लड़के कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं, गोया ये कोई प्रतियोगिता है या कंधे से कंधा मिलाकर चलने की प्रतिबद्धता। ये हैं हमारे आज के समाज के बच्चे। कहां गईं सामाजिक मान्यताएं। जब टी.वी. चैनल पर दिल्ली के ही कुछ स्कूलों के बारे में ये रिपोर्ट दिखाई गई तब रजत शर्मा ने उन स्कूलों के प्रधानाचार्य या प्रबंधन को आपकी अदालत में क्यों नहीं घसीटा ? जिन स्कूलों में शिक्षक छात्र-छात्राओं का यौन शोषण करते हैं उन स्कूलों के प्रबंधन को क्यों कटघरे में खड़ा नहीं किया जाता। जहां तक `सवाल सच का सामना का है उसका समय भी रात दस बजे का था जब बच्चों के सोने का समय होता है उस दौरान स्क्रीन पर लगातार चलता है कि अविभावकों की निगरानी आवश्यक है और यदि बच्चे कहना नहीं मानते तो आप उन्हें क्या सीख देंगे और बाद में उसका समय 11 बजे कर दिया गया।

अब जरा उस कार्यक्रम पर भी चर्चा करें। उस कार्यक्रम में हमें क्या परोसा जा रहा था। सच का सामना करने वाले हर व्यक्ति से शारीरिक संबंधों के बारे में जरूर पूछा गया। महिला से उसके पति के सामने पूछा गया कि कहीं और शादी होती तो आप ज्यादा खुश होतीं? क्या तलाक हो चुका है? ये कैसा जीवन है जहां शादी के डेढ़ साल बाद गुपचुप ढंग से तलाक ले लिया जाता है और घर वालों को पता भी नहीं चलता। इसके बावजूद साथ रहें और गर्ल फ्रैंड छूटने का इंतजार रहे। जहां हुसैन साहब जैसे कलाकार अपनी बेटी से छोटी उम्र की लड़की से शारीरिक संबंधों को स्वीकार करें। जहां व्यक्ति विशेष ये बताए कि जरूरत के लिए उसने समलैंगिक संबंध बनाए, पैसों के लिए शादीशुदा महिलाओं से संबंध बनाए। योगा सिखाने के बहाने उसने अपने क्लाइंट्स को सेक्स वर्कर् उपलब्ध करवाए और ये सब अपने माता-पिता, भाई की मौजूदगी में स्वीकार करे। क्या यही सामाजिक मान्यता है, लिहाज है। इतना सब जानने के बाद माता-पिता कैसे गले से लगा सकते हैं और वो कैसे उनकी नजरों का सामना कर सकता है। क्या यही शिक्षा हमें दी जाती है कि एक दिन इस तरह हम घरवालों का नाम रोशन करें, सबके सामने शर्मसार करें? बाबी डार्लिंग ये खुलासा करे कि उसके पुरुष मित्रों ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने चाहे। जहां धड़ल्ले से स्वीकार किया जाए कि शादी के बाद उनके शारीरिक संबंध कहीं और हैं। इस कार्यक्रम के जरिए लोगों को क्या संदेश दिया गया कि समाज में सैक्स ही सबकुछ है। किसी भी स्तिथि में, किसी भी उम्र में, इस भूख की न कोई सीमा है न अंत, न रिश्ते हैं न शर्म। ये आम चलन है आप भी सारी सामाजिक मान्यताओं को ताख पर रखकर बिंदास होकर सैक्स करिए और फिर रुपयों की खातिर रिश्तों को तार-तार करिए। उस मंच पर ऐसे प्रत्येक व्यक्ति का स्वागत हुआ जो किसी न किसी रूप से अनेक के साथ शारीरिक संबंधों से जुड़ा रहा। ये तो खुला आमंत्रण है जिसने जितने ज्यादा पाप किए हों (क्योंकि ये पुण्य तो हो नहीं सकता, हां, करने वालों की नजर में सही जरूर है क्योंकि ये उनका नजरिया है) आफिस में घपले किए हों, नकली व घटिया सामान सप्लाई किया हो और जो बेशर्मी से रुपयों के लिए सबके सामने स्वीकार कर सकता हो हां, मैने सारे गलत काम किए हैं और ये कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि ये सारे काम भी रुपयों के लिए ही किए गए। यानि जीवन का एकमात्र उद्देश्य येन-केन-प्रकारेण रुपया कमाना है। ये तो गलत काम को पुरुस्कृत करना जैसा हुआ। हो सकता है सीजन टू में वो महिलाएं आएं जो देह व्यापार करती हों और जिनको लोग पहचानते हैं उन्हें सबके सामने आकर स्वीकार करने से क्या गुरेज होगी?

आज से बीस साल पहले मैं एक ऐसी लड़की को जानती थी जिन्होने कई बार अपने शरीर का सौदा किया था। मैने उन्हें हमेशा दीदी कहा। आज भी मैं उनकी इज्जत करती हूं। हम लोग उस समय लखनऊ शिफ्ट हुए थे। मुझे मना किया गया था कि उनसे दूर रहूं। हालांकि मेरी मां भी उन्हें दोषी नहीं मानती थीं लेकिन बदनामी की हवा से सभी दूर रहना चाहते हैं। मैं छोटी जरूर थी मगर इतनी भी नहीं कि चीजें नहीं समझती थी। अगर मेरे जाने के बाद ये घटता तो मैं जरूर उनका साथ देती। उन्होने जो किया रुपए कमाने के लिए नहीं बल्कि अपनी बहन की जान बचाने के लिए। पहली बार वो पचास रुपए के लिए बिकी थीं, वो भी अपने चचेरे चाचा के हाथ। पिता ने लाखों की जायदाद बर्बाद कर दी थी। उनकी दो छोटी बहनें और एक पागल भाई था। बड़ी मुश्किल से वो इंटर कर पाई थीं। घर चलाने के लिए दीदी मोहल्ले के छोटे से स्कूल में पढ़ाती थीं। एक बार उनकी सबसे छोटी बहन को बुखार चढ़ा। वो बुखार से तप रही थी दवा के लिए रुपए नहीं थे। वो स्कूल के प्रिंसिपल के पास रुपए मांगने गई तो उन्होंने उनसे कीमत मांगी और दीदी खरी-खोटी सुनाकर वापस आ गईं लेकिन रात में उसकी तबियत बिगड़ गई और वो मदद मांगने अपने चचेरे चाचा के पास गईं और वहां उनके जीवन की पहली रात घटी जिसने फिर ऐसी कई रातें दीं। जिस लड़के को चाहती थीं उसने सब जानते हुए अपनाना चाहा लेकिन होने वाली सास के कारण उन्होने शादी नहीं की। फिर जब उन्हें पता चला कि उसी चाचा की गंदी नजरें उनकी छोटी बहन पर पड़ रही हैं तो अपनी बहन को बचाने के लिए लड़का ढूंढा और कम उम्र में ही उन्होने उसकी शादी कर दी ताकि उसकी इज्जत बच सके। लड़के का एक पैर जरूर खराब था लेकिन परिवार बहुत सम्पन्न था उन्होने अपनी बहन को इज्जत के साथ विदा किया। उनके बेशर्म पिता उनकी कमाई खाते रहे। पागलपन में भाई की मृत्यु हो गई। बीमारी में सबसे छोटी बहन चल बसी। उसके बाद पता चला कि उस लड़के ने उनसे शादी कर ली और उसके बाद उस मोहल्ले में कभी नहीं आई। अब पता नहीं वो किस गुमनामी के अंधेरे में गुम हो गई। खुद मजबूरी को भोगा मगर बहन को बचाया, जब दोनो भाई-बहन की मृत्यु हो गई तो खुद फाके किए मगर फिर बिकी नहीं। आज वो हैं भी या नहीं। मैं नहीं जानती मगर मैं उनको सलाम करती हूं। उन्होने हार नहीं मानी थी। उस प्रिंसिपल के आगे वो झुकी नहीं लेकिन तबियत बिगड़ने पर वो अपने चाचा के पास ही गईं थी और लूटने वाला अपना ही निकला। फिर भी उन्होने अपनी बहन पर आंच नहीं आने दी। छोटे भाई-बहन की मृत्यु के बाद उन्होने वह जगह ही छोड़ दी। वो कोई अकेली ऐसी लड़की नहीं हैं, बहुत होंगी जिन्होने अपने परिवार के लिए अपनी इज्जत का सौदा किया होगा क्योंकि बच्चे पैदा करने के बाद गरीबी के कारण माता-पिता पढ़ा नहीं पाते और हमारा तथाकथित समाज इन्हीं बातों का फायदा उठाकर लड़कियों को शिकार बनाता है। शायद भगवान ने बड़ी बहन को ये जज्बा देकर भेजा है कि छोटे भाई-बहनों के लिए वो कुरबान हो जाएं। लेकिन इसके बाद वो परिवार को शर्मसार नहीं करतीं लेकिन सेक्स वर्कर उपलब्ध कराना तो दलालों का काम है, धंधा है उनका। इसमें झूठ-सच क्या। क्योंकि वो दस लाख-पच्चीस लाख जीत रहे हैं तो माता-पिता दलाली जैसे गुनाह माफ कर रहे हैं। अगर वाकई में शर्मिंदगी है तो पहले अपने माता-पिता के सामने सच क्यों नहीं कुबूल किया। क्यों अब तक छुपाए रखा। ये भी सच है कि किसी को जबरदस्ती नहीं बुलाया गया था लेकिन ये कौन सा जौहर दिखाने का मंच था जहां पर उसके साहस या गुणों को परखा जा रहा था। जहां तक सामाजिक मान्यताओं और संस्कृति की बात है तो हमें रिश्तों का और महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जाता है। मंजिल पाने के लिए गलत रास्ता नहीं चुनने की सलाह दी जाती लेकिन शो का उद्देश्य क्या था कि जो जितने ज्यादा कपड़े उतारेगा, उतने ज्यादा रुपए ले जाएगा। जो नंगा हो जाएगा उसे एक करोड़ मिलेगा। ये तो कपड़े उतारने-उतरवाने का शो था। इससे ज्यादा कुछ नहीं।

इसे आप वीणा के सुर पर भी देख सकते हैं

बुधवार, 21 अक्तूबर 2009

`सच का सामना '

जिंदगी जीने का सबका अपना अंदाज होता है। अंदाज के साथ उसका अधिकार भी है ऐसे में किसी के भी अधिकार या अंदाज पर दखल देना कहां तक उचित है? और उचित है भी या नहीं? जहां तक मैं समझती हूं और शायद ठीक ही समझती हूं किसी भी व्यक्ति के पास अपने जीवन के अलावा कुछ भी निजी नहीं है। उस पर भी मीडिया सेंध मार चुका है। बची-खुची कसर हम लोग आपस में ही टांग खीचकर पूरी कर लेते हैं। मुद्दे पैदा करना और उलटी दिशा में चलना हमारी फितरत बन चुकी है। किसी का सही या गलत होना या हमारी सोच में सही-गलत का फैसला दोनों बातें अलग हैं। गलत को तो गलत ठहराया ही जाना चाहिए लेकिन दुख वहां होता है जहां केवल अड़ंगे लगाने के लिए,टांग खीचने के लिए सही को भी गलत ठहराया जाता है। कुछ समय पहले टी.वी.के स्टार प्लस चैनल पर एक कार्यक्रम प्रसारित हुआ `सच का सामना। इसके साथ ही शुरू हुई मुद्दों की श्रंखला। पहला मुद्दा सामाजिक मान्यता बना। हम किन सामाजिक मान्यताओं की बात करते हैं जो हमने अपनी सोच और फायदे के अनुसार निर्धारित की है। इधर आने वाले सभी सीरियलों में किन सामाजिक मान्यताओं का ध्यान रखा जाता है। विवाह पूर्व व विवाह के बाद संबंधों को दिखाना आम बात है। शादी के कुछ वर्षों कहीं से एक लड़का या लड़की का आना और घर की शालीन व प्रिय बहू का बेटा या बेटी होने का दावा करना, जो बाद में सही निकलता है। शादी के बाद प्रेम संबंधों का होना कुछ नया नहीं। रजत शर्मा ने भी सच का सामना को लेकर`आपकी अदालत में यही मुद्दे बार-बार उठाए। बच्चा गिराना, गर्भवती होना जैसे शब्दों को और उनके बारे में आज छोटे-छोटे बच्चे भी जानते हैं। छठी-सातवीं में पढ़ने वाले बच्चे सेक्स करते हैं। टीवी पर दिखाई एक रिपोर्ट में जब लड़कों से पूछा गया कि आप लोग सैक्स करतें हैं तो उनका जवाब था`हां, जब ये पूछा गया कि क्या लड़कियों के साथ आप जबरदस्ती करते हैं या बहलाते-फुसलाते हैं। तो उन्होने कहा वो अपनी मर्जी से करती हैं हम जबरदस्ती नहीं करते और लड़कियों से पूछने पर उन्होंने धड़ल्ले से कहा जब लड़के कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं, गोया ये कोई प्रतियोगिता है या कंधे से कंधा मिलाकर चलने की प्रतिबद्धता। ये हैं हमारे आज के समाज के बच्चे। कहां गईं सामाजिक मान्यताएं। जब टी.वी. चैनल पर दिल्ली के ही कुछ स्कूलों के बारे में ये रिपोर्ट दिखाई गई तब रजत शर्मा ने उन स्कूलों के प्रधानाचार्य या प्रबंधन को आपकी अदालत में क्यों नहीं घसीटा ? जिन स्कूलों में शिक्षक छात्र-छात्राओं का यौन शोषण करते हैं उन स्कूलों के प्रबंधन को क्यों कटघरे में खड़ा नहीं किया जाता। जहां तक `सवाल सच का सामना का है उसका समय भी रात दस बजे का था जब बच्चों के सोने का समय होता है उस दौरान स्क्रीन पर लगातार चलता है कि अविभावकों की निगरानी आवश्यक है और यदि बच्चे कहना नहीं मानते तो आप उन्हें क्या सीख देंगे और बाद में उसका समय 11 बजे कर दिया गया।

अब जरा उस कार्यक्रम पर भी चर्चा करें। उस कार्यक्रम में हमें क्या परोसा जा रहा था। सच का सामना करने वाले हर व्यक्ति से शारीरिक संबंधों के बारे में जरूर पूछा गया। महिला से उसके पति के सामने पूछा गया कि कहीं और शादी होती तो आप ज्यादा खुश होतीं? क्या तलाक हो चुका है? ये कैसा जीवन है जहां शादी के डेढ़ साल बाद गुपचुप ढंग से तलाक ले लिया जाता है और घर वालों को पता भी नहीं चलता। इसके बावजूद साथ रहें और गर्ल फ्रैंड छूटने का इंतजार रहे। जहां हुसैन साहब जैसे कलाकार अपनी बेटी से छोटी उम्र की लड़की से शारीरिक संबंधों को स्वीकार करें। जहां व्यक्ति विशेष ये बताए कि जरूरत के लिए उसने समलैंगिक संबंध बनाए, पैसों के लिए शादीशुदा महिलाओं से संबंध बनाए। योगा सिखाने के बहाने उसने अपने क्लाइंट्स को सेक्स वर्कर् उपलब्ध करवाए और ये सब अपने माता-पिता, भाई की मौजूदगी में स्वीकार करे। क्या यही सामाजिक मान्यता है, लिहाज है। इतना सब जानने के बाद माता-पिता कैसे गले से लगा सकते हैं और वो कैसे उनकी नजरों का सामना कर सकता है। क्या यही शिक्षा हमें दी जाती है कि एक दिन इस तरह हम घरवालों का नाम रोशन करें, सबके सामने शर्मसार करें? बाबी डार्लिंग ये खुलासा करे कि उसके पुरुष मित्रों ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने चाहे। जहां धड़ल्ले से स्वीकार किया जाए कि शादी के बाद उनके शारीरिक संबंध कहीं और हैं। इस कार्यक्रम के जरिए लोगों को क्या संदेश दिया गया कि समाज में सैक्स ही सबकुछ है। किसी भी स्तिथि में, किसी भी उम्र में, इस भूख की न कोई सीमा है न अंत, न रिश्ते हैं न शर्म। ये आम चलन है आप भी सारी सामाजिक मान्यताओं को ताख पर रखकर बिंदास होकर सैक्स करिए और फिर रुपयों की खातिर रिश्तों को तार-तार करिए। उस मंच पर ऐसे प्रत्येक व्यक्ति का स्वागत हुआ जो किसी न किसी रूप से अनेक के साथ शारीरिक संबंधों से जुड़ा रहा। ये तो खुला आमंत्रण है जिसने जितने ज्यादा पाप किए हों (क्योंकि ये पुण्य तो हो नहीं सकता, हां, करने वालों की नजर में सही जरूर है क्योंकि ये उनका नजरिया है) आफिस में घपले किए हों, नकली व घटिया सामान सप्लाई किया हो और जो बेशर्मी से रुपयों के लिए सबके सामने स्वीकार कर सकता हो हां, मैने सारे गलत काम किए हैं और ये कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि ये सारे काम भी रुपयों के लिए ही किए गए। यानि जीवन का एकमात्र उद्देश्य येन-केन-प्रकारेण रुपया कमाना है। ये तो गलत काम को पुरुस्कृत करना जैसा हुआ। हो सकता है सीजन टू में वो महिलाएं आएं जो देह व्यापार करती हों और जिनको लोग पहचानते हैं उन्हें सबके सामने आकर स्वीकार करने से क्या गुरेज होगी?

आज से बीस साल पहले मैं एक ऐसी लड़की को जानती थी जिन्होने कई बार अपने शरीर का सौदा किया था। मैने उन्हें हमेशा दीदी कहा। आज भी मैं उनकी इज्जत करती हूं। हम लोग उस समय लखनऊ शिफ्ट हुए थे। मुझे मना किया गया था कि उनसे दूर रहूं। हालांकि मेरी मां भी उन्हें दोषी नहीं मानती थीं लेकिन बदनामी की हवा से सभी दूर रहना चाहते हैं। मैं छोटी जरूर थी मगर इतनी भी नहीं कि चीजें नहीं समझती थी। अगर मेरे जाने के बाद ये घटता तो मैं जरूर उनका साथ देती। उन्होने जो किया रुपए कमाने के लिए नहीं बल्कि अपनी बहन की जान बचाने के लिए। पहली बार वो पचास रुपए के लिए बिकी थीं, वो भी अपने चचेरे चाचा के हाथ। पिता ने लाखों की जायदाद बर्बाद कर दी थी। उनकी दो छोटी बहनें और एक पागल भाई था। बड़ी मुश्किल से वो इंटर कर पाई थीं। घर चलाने के लिए दीदी मोहल्ले के छोटे से स्कूल में पढ़ाती थीं। एक बार उनकी सबसे छोटी बहन को बुखार चढ़ा। वो बुखार से तप रही थी दवा के लिए रुपए नहीं थे। वो स्कूल के प्रिंसिपल के पास रुपए मांगने गई तो उन्होंने उनसे कीमत मांगी और दीदी खरी-खोटी सुनाकर वापस आ गईं लेकिन रात में उसकी तबियत बिगड़ गई और वो मदद मांगने अपने चचेरे चाचा के पास गईं और वहां उनके जीवन की पहली रात घटी जिसने फिर ऐसी कई रातें दीं। जिस लड़के को चाहती थीं उसने सब जानते हुए अपनाना चाहा लेकिन होने वाली सास के कारण उन्होने शादी नहीं की। फिर जब उन्हें पता चला कि उसी चाचा की गंदी नजरें उनकी छोटी बहन पर पड़ रही हैं तो अपनी बहन को बचाने के लिए लड़का ढूंढा और कम उम्र में ही उन्होने उसकी शादी कर दी ताकि उसकी इज्जत बच सके। लड़के का एक पैर जरूर खराब था लेकिन परिवार बहुत सम्पन्न था उन्होने अपनी बहन को इज्जत के साथ विदा किया। उनके बेशर्म पिता उनकी कमाई खाते रहे। पागलपन में भाई की मृत्यु हो गई। बीमारी में सबसे छोटी बहन चल बसी। उसके बाद पता चला कि उस लड़के ने उनसे शादी कर ली और उसके बाद उस मोहल्ले में कभी नहीं आई। अब पता नहीं वो किस गुमनामी के अंधेरे में गुम हो गई। खुद मजबूरी को भोगा मगर बहन को बचाया, जब दोनो भाई-बहन की मृत्यु हो गई तो खुद फाके किए मगर फिर बिकी नहीं। आज वो हैं भी या नहीं। मैं नहीं जानती मगर मैं उनको सलाम करती हूं। उन्होने हार नहीं मानी थी। उस प्रिंसिपल के आगे वो झुकी नहीं लेकिन तबियत बिगड़ने पर वो अपने चाचा के पास ही गईं थी और लूटने वाला अपना ही निकला। फिर भी उन्होने अपनी बहन पर आंच नहीं आने दी। छोटे भाई-बहन की मृत्यु के बाद उन्होने वह जगह ही छोड़ दी। वो कोई अकेली ऐसी लड़की नहीं हैं, बहुत होंगी जिन्होने अपने परिवार के लिए अपनी इज्जत का सौदा किया होगा क्योंकि बच्चे पैदा करने के बाद गरीबी के कारण माता-पिता पढ़ा नहीं पाते और हमारा तथाकथित समाज इन्हीं बातों का फायदा उठाकर लड़कियों को शिकार बनाता है। शायद भगवान ने बड़ी बहन को ये जज्बा देकर भेजा है कि छोटे भाई-बहनों के लिए वो कुरबान हो जाएं। लेकिन इसके बाद वो परिवार को शर्मसार नहीं करतीं लेकिन सेक्स वर्कर उपलब्ध कराना तो दलालों का काम है, धंधा है उनका। इसमें झूठ-सच क्या। क्योंकि वो दस लाख-पच्चीस लाख जीत रहे हैं तो माता-पिता दलाली जैसे गुनाह माफ कर रहे हैं। अगर वाकई में शर्मिंदगी है तो पहले अपने माता-पिता के सामने सच क्यों नहीं कुबूल किया। क्यों अब तक छुपाए रखा। ये भी सच है कि किसी को जबरदस्ती नहीं बुलाया गया था लेकिन ये कौन सा जौहर दिखाने का मंच था जहां पर उसके साहस या गुणों को परखा जा रहा था। जहां तक सामाजिक मान्यताओं और संस्कृति की बात है तो हमें रिश्तों का और महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जाता है। मंजिल पाने के लिए गलत रास्ता नहीं चुनने की सलाह दी जाती लेकिन शो का उद्देश्य क्या था कि जो जितने ज्यादा कपड़े उतारेगा, उतने ज्यादा रुपए ले जाएगा। जो नंगा हो जाएगा उसे एक करोड़ मिलेगा। ये तो कपड़े उतारने-उतरवाने का शो था। इससे ज्यादा कुछ नहीं।

गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

मानव: तब और अब (चार कविताएं)

मानव: तब और अब-1

हमसे बेहतर था
वो आदिमानव
जो नग्न था शरीर से
हम तो नग्न हैं आत्मा से

आत्मा
जो होता है परमात्मा का रूप
बदलता जा रहा है इसका स्वरूप
घट रही है
इसकी सूक्ष्मता
गौणता में
पवित्रता खोती जा रही है
व्याभिचार में
अनन्त से घिसटकर
सिमट गई है `मैं' में
नहीं धुल सकता अब मैल
गंगाजल से भी
कलुषिता मिटाने का
एक ही तो था आसरा
उसे भी नहीं छोड़ा
आधुनिक मानव ने
गंगा फिर भी दिखती है
कलुषित होते हुए
पर
मानव कपट को पहचानना
है उतना ही मुश्किल
जितना है
भाई को राखी बांधना
प्यार की पूजा करना
बच्चों में बचपन ढूंढना
जवानी की उम्र पहचानना
बुढ़ापे की सीमा जानना
मचलती आंखों के इशारे समझना
और
तन ढकने के लिए उठे
दो हाथों का फिसलना

मानव:तब और अब-2

हमसे अच्छा था
वो आदिमानव
जिसके पास नहीं थे शब्द भावों के
मौन थी अभिव्यक्ति जिसकी

तब भी था प्यार
धरा पर
सभ्यता के सूत्र में
नहीं बंधा था प्यार
लेकिन ...
`वाइल्ड लव' में भी था बरकरार
जीवन का सुख
आज
`कल्चर्ड लव' में भी है
वहशीपन, दरिंदगी
मूक होते हुए भी
सम्मान था
भावों का
आज
नहीं बचा है
आधार रिश्तों का




मानव: तब और अब-3

श्रेष्ठ था
वो आदिमानव
जो नहीं था सभ्य
हमारी तरह

फिर भी था
सभ्य मानव से
कहीं आगे
धीरे-धीरे प्रकृति ने
दिये शब्द औजारों के
लेकिन...
शब्द ढलते गए
खंजर में
भाव ढलते गए
कड़ुवाहट में
रह गई केवल
मन की कलुषता
पवित्र था मन
उस आदिमानव का
हम
आधुनिक होकर भी
लिपटे हैं मैल में
विष भरा है मन में
उगल रहे हैं जहर



मानव: तब और अब-4


धन्य था
वो आदिमानव
नहीं पनप सकी थी
संस्कृति जिसमें

वो था असंस्कृत होते हुए भी
सुसंस्कृत
हम हैं
सुसंस्कृत होते हुए भी
असंस्कृत
धीरे-धीरे मानव सभ्य हुआ
पनपे संस्कार
मानव छूता गया
आकाश की ऊंचाई
पार कर गया
असंख्य सीमाओं को
लेकिन
न जाने
कब पड़ा और पनपा-फूला
बीज निकृष्टता का
फलित हुआ तो जाना
नहीं बचे हैं मानव मूल्य
उस हजारों साल पहले के इंसान के
स्खलित हो गए हैं
विचार
पनप गए हैं बाल सूअर के
आंखों में
नहीं बचा है आधार
मानवता का
प्यार के नाम पर है छलावा
वो मानव
जो नहीं था सभ्य
रमा प्यार में
तो गन्धर्व विवाह किया
फूटने वाली नन्हीं कोपल को
दिया सम्मान और अपना नाम
आज दिया जाता है नाम
`नाजायज,'` हरामी' का
बिन ब्याही मां बनाकर
छोड़ दिया जाता है लड़की को
समाज से लड़ने, मरने के लिए
बचाने के लिए अपना सम्मान
फेंक दिया जाता है
किसी गटर में
सांसे देने से पहले
छीन ली जाती हैं सासें उसकी
पनपने से पहले
हो जाती है पूरी
मिट्टी में मिलने की क्रिया
अभी तो पहुंचा है मानव
चंद्रमा पर
तो गिरा है इतने नीचे
जब पहुंचेगा इसके आगे
और
होंगी नई खोजें
सम्भव है अनुमान लगाना
अपनी ऊंचाई का
पर पता नहीं लगेगा
उस स्तर का
जहां हम होंगे नीचे