गुरुवार, 1 अक्तूबर 2009

मानव: तब और अब (चार कविताएं)

मानव: तब और अब-1

हमसे बेहतर था
वो आदिमानव
जो नग्न था शरीर से
हम तो नग्न हैं आत्मा से

आत्मा
जो होता है परमात्मा का रूप
बदलता जा रहा है इसका स्वरूप
घट रही है
इसकी सूक्ष्मता
गौणता में
पवित्रता खोती जा रही है
व्याभिचार में
अनन्त से घिसटकर
सिमट गई है `मैं' में
नहीं धुल सकता अब मैल
गंगाजल से भी
कलुषिता मिटाने का
एक ही तो था आसरा
उसे भी नहीं छोड़ा
आधुनिक मानव ने
गंगा फिर भी दिखती है
कलुषित होते हुए
पर
मानव कपट को पहचानना
है उतना ही मुश्किल
जितना है
भाई को राखी बांधना
प्यार की पूजा करना
बच्चों में बचपन ढूंढना
जवानी की उम्र पहचानना
बुढ़ापे की सीमा जानना
मचलती आंखों के इशारे समझना
और
तन ढकने के लिए उठे
दो हाथों का फिसलना

मानव:तब और अब-2

हमसे अच्छा था
वो आदिमानव
जिसके पास नहीं थे शब्द भावों के
मौन थी अभिव्यक्ति जिसकी

तब भी था प्यार
धरा पर
सभ्यता के सूत्र में
नहीं बंधा था प्यार
लेकिन ...
`वाइल्ड लव' में भी था बरकरार
जीवन का सुख
आज
`कल्चर्ड लव' में भी है
वहशीपन, दरिंदगी
मूक होते हुए भी
सम्मान था
भावों का
आज
नहीं बचा है
आधार रिश्तों का




मानव: तब और अब-3

श्रेष्ठ था
वो आदिमानव
जो नहीं था सभ्य
हमारी तरह

फिर भी था
सभ्य मानव से
कहीं आगे
धीरे-धीरे प्रकृति ने
दिये शब्द औजारों के
लेकिन...
शब्द ढलते गए
खंजर में
भाव ढलते गए
कड़ुवाहट में
रह गई केवल
मन की कलुषता
पवित्र था मन
उस आदिमानव का
हम
आधुनिक होकर भी
लिपटे हैं मैल में
विष भरा है मन में
उगल रहे हैं जहर



मानव: तब और अब-4


धन्य था
वो आदिमानव
नहीं पनप सकी थी
संस्कृति जिसमें

वो था असंस्कृत होते हुए भी
सुसंस्कृत
हम हैं
सुसंस्कृत होते हुए भी
असंस्कृत
धीरे-धीरे मानव सभ्य हुआ
पनपे संस्कार
मानव छूता गया
आकाश की ऊंचाई
पार कर गया
असंख्य सीमाओं को
लेकिन
न जाने
कब पड़ा और पनपा-फूला
बीज निकृष्टता का
फलित हुआ तो जाना
नहीं बचे हैं मानव मूल्य
उस हजारों साल पहले के इंसान के
स्खलित हो गए हैं
विचार
पनप गए हैं बाल सूअर के
आंखों में
नहीं बचा है आधार
मानवता का
प्यार के नाम पर है छलावा
वो मानव
जो नहीं था सभ्य
रमा प्यार में
तो गन्धर्व विवाह किया
फूटने वाली नन्हीं कोपल को
दिया सम्मान और अपना नाम
आज दिया जाता है नाम
`नाजायज,'` हरामी' का
बिन ब्याही मां बनाकर
छोड़ दिया जाता है लड़की को
समाज से लड़ने, मरने के लिए
बचाने के लिए अपना सम्मान
फेंक दिया जाता है
किसी गटर में
सांसे देने से पहले
छीन ली जाती हैं सासें उसकी
पनपने से पहले
हो जाती है पूरी
मिट्टी में मिलने की क्रिया
अभी तो पहुंचा है मानव
चंद्रमा पर
तो गिरा है इतने नीचे
जब पहुंचेगा इसके आगे
और
होंगी नई खोजें
सम्भव है अनुमान लगाना
अपनी ऊंचाई का
पर पता नहीं लगेगा
उस स्तर का
जहां हम होंगे नीचे

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