tag:blogger.com,1999:blog-62526449647031711612024-03-12T22:56:19.925-07:00शिकंजीवीना श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/09586067958061417939noreply@blogger.comBlogger8125tag:blogger.com,1999:blog-6252644964703171161.post-89166721654891760502010-10-10T04:42:00.000-07:002012-01-21T06:31:18.301-08:00सखुआ और चीड़ की जुगलबंदी<div class="ii gt" id=":15i" style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; margin-bottom: 5px; margin-left: 15px; margin-right: 15px; margin-top: 5px; padding-bottom: 20px;"><div id=":15h"><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_dFgmkIjDTdwR1hmPYtOAytlkp0ePiFdrL74ZGQanm6ShN6xSuxvz6iaZ3RT_M90_VF4CEwiTqTQvo0Zp9mS0xFMrwXKTcg0dFPXeflfazUC1Ndr4dNo4WwkjajPq9nAtK64vcVu7X6w/s1600/netarhat+2oct+2010+066.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="212" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi_dFgmkIjDTdwR1hmPYtOAytlkp0ePiFdrL74ZGQanm6ShN6xSuxvz6iaZ3RT_M90_VF4CEwiTqTQvo0Zp9mS0xFMrwXKTcg0dFPXeflfazUC1Ndr4dNo4WwkjajPq9nAtK64vcVu7X6w/s320/netarhat+2oct+2010+066.JPG" width="320" /></a></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihO-MshySyp76fqMQv_fFFOC2a-xOAO9zVAWnXahPJeNFC87Pk5IKgnCCLpNYRYtw6gFJ8xRHj7u28h68IjvLoEbWENKGRVEOnvvGqDLhYYX4WTu7RocilR3ChqtRfq_5vc2Fh_yU60dI/s1600/netarhat+2oct+2010+044new.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEihO-MshySyp76fqMQv_fFFOC2a-xOAO9zVAWnXahPJeNFC87Pk5IKgnCCLpNYRYtw6gFJ8xRHj7u28h68IjvLoEbWENKGRVEOnvvGqDLhYYX4WTu7RocilR3ChqtRfq_5vc2Fh_yU60dI/s320/netarhat+2oct+2010+044new.JPG" width="258" /></a></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgs6dPUyysC80JwP9W9wcCqynLV_rfUnMgBxjKh6M1hoDxFjUMNI1dbHfrS-LOK_TMe0nbwCLEYLtuHYdQFTYrxL9t_1IVlU0whW-o9kTB2bKF18ZKMHeUEf-p2J8MsxsbEPM5P8Szv2bk/s1600/netarhat+2oct+2010+106.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="212" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgs6dPUyysC80JwP9W9wcCqynLV_rfUnMgBxjKh6M1hoDxFjUMNI1dbHfrS-LOK_TMe0nbwCLEYLtuHYdQFTYrxL9t_1IVlU0whW-o9kTB2bKF18ZKMHeUEf-p2J8MsxsbEPM5P8Szv2bk/s320/netarhat+2oct+2010+106.JPG" width="320" /></a></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZc1fmD_vXSuWDqLAzLcPvYf-oJVuMikFreFUnBjE4AcVfhiPrapkuVbW9ng_WblPdhXVM1JuKMOFe8pxhm6FOtzIgQfE37g7jdVpfG_Hp1uTPmY0QTzoY577R3rMsTVoFzTLcdJ51SNY/s1600/netarhat+2oct+2010+082.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgZc1fmD_vXSuWDqLAzLcPvYf-oJVuMikFreFUnBjE4AcVfhiPrapkuVbW9ng_WblPdhXVM1JuKMOFe8pxhm6FOtzIgQfE37g7jdVpfG_Hp1uTPmY0QTzoY577R3rMsTVoFzTLcdJ51SNY/s320/netarhat+2oct+2010+082.JPG" width="212" /></a></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRYowCWjNV2bq2IWZj7OK805KDyvdAZyNj4idpyT7asV8PuNhaJffWdyez-tYaUv7rmKTpZeuihf1MhdJiWCXhpjzbH04uGHewBRbeOLxbq2EiEQ2JJpS7gRlZh0oN37ze5HASr7ToaaM/s1600/netarhat+2oct+2010+090.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgRYowCWjNV2bq2IWZj7OK805KDyvdAZyNj4idpyT7asV8PuNhaJffWdyez-tYaUv7rmKTpZeuihf1MhdJiWCXhpjzbH04uGHewBRbeOLxbq2EiEQ2JJpS7gRlZh0oN37ze5HASr7ToaaM/s320/netarhat+2oct+2010+090.JPG" width="212" /></a></div><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiu-hJIDBIYwBLM9faNeQfmWzd5dmJCqORZfUBHi1CBhvhHBmdT31LyD6iOcIMwmewsKoogglhyphenhyphenG-suSdsMtFI3WQFYEtrB-CxuYsjnyB0AR1X-i0dax75PTiz4PEjazoPhhRXww5OcP98/s1600/netarhat+2oct+2010+095.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="212" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiu-hJIDBIYwBLM9faNeQfmWzd5dmJCqORZfUBHi1CBhvhHBmdT31LyD6iOcIMwmewsKoogglhyphenhyphenG-suSdsMtFI3WQFYEtrB-CxuYsjnyB0AR1X-i0dax75PTiz4PEjazoPhhRXww5OcP98/s320/netarhat+2oct+2010+095.JPG" width="320" /></a></div><div>वीना श्रीवास्तव</div><div>शनिवार की सुबह हम साढ़े पांच बजे जग गए। पूरब की दिशा में आकाश में बादल थे, लगा शायद सूर्योदय नहीं देख पाएंगे। फिर भी हम कैमरे के साथ वाच टावर पहुंच गए। वहां तीन लोग पहले से ही मौजूद थे।वातावरण में ठंडी हवा बह रही थी। पौने छह बजे मध्यम सा एक लाल गोला बादलों के बीच झलका लेकिन वह एक नजर में नहीं दिखाई दे रहा था। मैने कहा वह देखो सूरज उग रहा है। सब लोगों की निगाह आकाश पर लग गई। तब तक हल्का सा लाल गोला थोड़ा और ऊपर उठ चुका था, सामने की पहाड़ियों और सखुआ के पेड़ों के ऊपर। वाकई दिल को मोह लेने वाला दृश्य। हम 15 मिनट तक बाल सूरज को देखते रहे।</div><div>जीतन किसान ने नीचे से आवाज लगाई, बाबू चाय तैयार है, ऊपर ही लाएं क्या। हमने कहा नहीं, हम ही नीचे आते हैं। नीचे उतर कर हमने गेस्ट हाउस के बरामदे में गुनगुनी धूप के साथ चाय पी। इस दौरान हम घूमने की योजना पर भी चर्चा कर रहे थे। तय हुआ कि नाश्ते के बाद हम सनसेट प्वाइंट तक जाएंगे। वहां से लौटकर नेतरहाट स्कूल देखा जाएगा और फिर गेस्टहाउस लौटकर लंच लेंगे।</div><div><br />
</div><div>निर्धारित समय यानी ठीक साढ़े आठ बजे नाश्ता लगा। पराठें और आलू की भुजिया। यहां दही और दूध का रिवाज नहीं है। जीतन ने बताया था कि इसके अलावा टोस्ट बटर व आमलेट मिल सकता है। नाश्ते के बाद, हम सनसेट प्वाइंट की ओर रवाना हुए। पलामू बंगले से यह स्थान करीब 6 किमी है। रास्ता बेहद खूबसूरत। पतली सी सड़क सीधी सखुआ और चीड़ के बीच से। नेतरहाट स्कूल के बाद एक छोटी सी आदिवासी बस्ती पड़ी। सुंदर और शालीन घर। दूर से बटुली में पानी लाते बच्चे व महिलाएं। गाय व बकरियों के लिए चारे का इंतजाम करते लोग। जगह-जगह महिलाएं सड़क पर मक्का सुखा रहीं थीं। यहां कभी-कभार ही बाहरी लोग दिखाई देते हैं, सो लोग हमें कौतूहल से देख रहे थे।</div><div><br />
</div><div>रास्ते में चीड़ों के झुंड इतने शेप में दिख रहे थे जैसे किसी ने इनकी कटिंग कर ऐसा बनाया हो लेकिन यहां ऐसा कुछ नहीं होता है। हवा ही इन पेड़ों को संवारती है और शेप देती है। हमारी कार धीमे-धीमे चल रही थी और हम जंगल, हवा और मनोरम वातावरण का आनंद लेते हुए आगे बढ़ रहे थे। थोड़ी देर में हम सनसेट प्वाइंट पहुंच गए। वहां सनसेट देखने के लिए एक सीढ़ीदार प्लेटफार्म बना है। तीन साल पहले बने इस प्लेटफार्म की फर्श उखड़ चुकी है। उस पर लगे पत्थर गायब हैं, यहां तक कि उद्घाटन का पत्थर भी लोग उखाड़ ले गए।</div><div><br />
</div><div>सरकारी उपेक्षा से प्राकृतिक खूबसूरती तो उखड़ती नहीं है लिहाजा इस प्वाइंट से खूबसूरत नजारा देखने को मिलता है। इस प्वाइंट का नाम है मैग्नोलिया सनसेट प्वाइंट। इस प्वाइंट से नीचे एक गहरी खांईं है। बीच में घाटी है और फिर पहाड़ियों। सूरज इन्हीं पहाड़ियों के बीच डूबता है।</div><div><br />
</div><div>इस नाम के पीछे एक कहानी है- लोग बताते हैं यहां पहले एक अंग्रेज साहब रहता था जिसकी बेटी थी मैग्नोलिया। मैग्नोलिया बहुत खूबसूरत थी। हिंदुस्तान में ही पैदा हुई मैग्नोलिया यहां की भाषा भी अच्छे से आती थी। घुड़सवारी के दौरान उसकी मुलाकात एक आदिवासी नौजवान से हुई। यह नौजवान बहुत अच्छा गायक था। उसकी आवाज जंगलों में और भी मारक हो जाती थी। उसकी आवाज सुनकर मैग्नोलिया बेचैन हो उठती थी। मुलाकात का दौर शुरू हुआ और धीरे-धीरे मैग्नोलिया के मन के कोमल से भाव ने मोहब्बत का रूप ले लिया। मैग्नोलिया उस आदिवासी के साथ रहना चाहती थी लेकिन उसके मां-बाप को यह मंज़ूर नहीं था। अंग्रेज साहब को जब कोई रास्ता न सूझा तो उसने आदिवासी युवक की हत्या करा दी। जब मैग्नोलिया को पता चलता है तो वह पागल हो उठती है। कहती है मुझे उस लड़के से मिलना है। अपने घोड़े पर सवार होती है और घोड़ा दौड़ाते हुए उस खांईं में छलांग लगा देती है। लोगों का कहना है कि कभी-कभी मधुर आवाज इस खांईं से आज भी सुनाई देती है और घोड़े पर सवार मैग्नोलिया भी दिखाई दे जाती है। इस तरह इस प्वाइंट का नाम मैग्नोलिया प्वाइंट पड़ गया।</div><div><br />
</div><div><br />
</div><div>शाम को लोहरदगा से आग्रह हुआ कि शनिवार की रात हम फारेस्ट रेस्टहाउस में स्थित लागहाउस में ठहरें। ठहरना तो नहीं हुआ लेकिन हम शाम को वहां चाय पीने जरूर गए। दरअसल हमने सोचा कि जब हम सनसेट देखने जाएंगे तो उधर से होते हुए जाएंगे। शाम को बादल छा गए लिहाजा सनसेट देखने का कार्यक्रम रद करना पड़ा और हम पहुंच गए फारेस्ट रेस्टहाउस। </div><div><br />
</div><div>साढ़े पांच बजे से बारिश शुरू हो गई। करीब आठ बजे तक जबरदस्त बारिश होती रही। घुप अंधेरा, तेज बारिश और केरोसिन लैंप के साथ हम बैठे पलामू बंगले के बरामदे में। प्रकृति ने जो माहौल बना रखा था कि उसका मजा ही अलग। बारिश की बूंदों के साथ सखुआ और चीड़ की जो जुगलबंदी शुरू हुई थी, वह तेज होती बारिश में डूब गई और फिर शुरू हुआ बादलों का मांदर। घड़ी की सुइंयां इतने धीमे चलती नजर आ रही थीं कि समय जैसे ठहर गया हो।</div><div><br />
</div><div>रविवार यानी 3 अक्टूबर को सुबह काफी चहलपहल थी। जब हम नाश्ता कर रहे थे तभी वहां विकास भारती संस्था के मुखिया अशोक भगत वहां आ गए। राजेंद्र को देखकर वह चौंक गए। नमस्कार हुआ। उन्होंने कहा कि गांधी जयंती पर विकास भारती आदिवासी युवक-युवतियों व बच्चों की एक दौड़ का आयोजन कर रहा है। यह दौड़ नेतरहाट स्कूल से शुरू होकर बनारी पर खत्म होगी। यानी करीब 25 किमी। अशोक भगत ने राजेंद्र से दौड़ को हरी झंडी दिखाने का आग्रह किया जिसे राजेंद्र ने सविनय मना कर दिया। </div><div><br />
</div><div>वापस होते हुए रास्ते में हमने देखा कि बड़ी संख्या में लड़के-लड़कियां (अधिकतर नंगे पांव) दौड़ते हुए नीचे जा रहे थे। विकास भारती ने जगह-जगह पानी का इंतजाम कर रखा था। कहीं से नहीं लग रहा था कि ये बच्चे नक्सली बनकर बंदूक उठाने का विकल्प अपनाएंगे यदि इन इलाकों को विकास मुख्यधारा में शामिल कर लिया जाए।</div><div><br />
</div><div>अशोक भगत के आग्रह पर हम बिशुनपुर में विकास भारती के परिसर स्थित गेस्टहाउस में चाय पीने के लिए रुके। विकास भारती के कामों की जानकारी हमें दी गई। हमने उनका स्वावलंबन केंद्र देखा कि कैसे स्थानीय लोगों को स्वरोजगार के लिए न सिर्फ ट्रेन किया जा रहा है बल्कि उनके लिए प्लेटफार्म का काम भी विकासभारती कर रही है। यही नहीं, दुनिया की सबसे पुरानी अयस्क से लोहा व एलुमुनियम बनाने की तकनीक को भी बचाए रखने का काम भी यहां चल रहा है।</div><div><br />
</div><div>लौटते में हम कुड़ू होकर नहीं बल्कि लोहरदगा से बेड़ो वाली सड़क से रांची आए। अच्छी सड़क, मनोहारी दृश्यों के बीच पता नहीं चला कि कब हम रांची पहुंच गए। कुल मिलाकर मुझे लगता है कि यदि आप दो-तीन दिन दुनिया-जहां से कटकर कुछ पल सुकून से बिताना चाहते हैं तो नेतरहाट सबसे मुफीद जगह है।</div><div><br />
</div><div>कैसे पहुंचे नेतरहाट</div><div>दिल्ली, कोलकाता, पटना व मुंबई से रांची वायुमार्ग से जुड़ा है। रेलमार्ग से रांची मुख्यरूप से दिल्ली व कोलकाता से जुड़ा है। रेल से धनबाद होकर भी रांची पहुंचा जा सकता है। धनबाद से रांची 160 किमी है। लखनऊ से आने के लिए कानपुर से ट्रेन पकड़े। रांची से टैक्सी लेकर नेतरहाट पहुंचा जा सकता है। सात में हल्के गर्म कपड़े ले जाना न भूलें।</div><div><br />
</div><div><br />
</div></div></div><div class="hq gt" id=":15s" style="border-collapse: collapse; clear: both; font-family: arial, sans-serif; font-size: 13px; margin-bottom: 15px; margin-left: 15px; margin-right: 15px; margin-top: 5px;"><div class="hp" style="border-top-color: rgb(111, 98, 53); border-top-style: solid; border-top-width: 2px; height: 0px; width: 220px;"></div></div>वीना श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/09586067958061417939noreply@blogger.com40tag:blogger.com,1999:blog-6252644964703171161.post-38139632084026871612010-10-07T04:16:00.000-07:002010-10-07T04:18:44.091-07:00नेतरहाट : सखुआ और चीड़ की जुगलबंदी..........वीना<div style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">वीना श्रीवास्तव</span></span></div><div style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><br />
</span> </span></div><div style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">नेतरहाट को यदि नेचर हाट कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। चीड़ और सखुआ के जंगल, नाशपाती के बागान, बादलों की सरपट दौड़ और शांत-मनोहारी माहौल व मौसम। रात को सखुआ के पत्तों पर एक बूंद भी गिरे तो आवाज सुनाई देती है। 3900 फुट की ऊंचाई पर बसा नेतरहाट किवदंतियों से भी भरा है। कोई भी आदमी आपको एक नया किस्सा सुना देगा।</span></span></div><div style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><br />
</span> </span></div><div style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">30 सितंबर को हम लोग बात कर रहे थे कि झारखंड में रहते हुए एक साल हो गया और हम लोग अब तक झारखंड में कहीं नहीं गए। एक लंबा वीकेंड हमारे सामने था लिहाजा विचार शुरू हुआ कि कहां जाया जाए। बाबाधाम से शुरुआत हुई लेकिन दूरी 325 किमी थी लिहाजा दूसरे विकल्पों पर नजर डाली गई। मैथन डैम, तिलैया डैम, बेतला फारेस्ट पर बात करते-करते हम आए नेतरहाट पर। इस बीच राजेंद्र फोन करके रहने की व्यवस्था की जानकारी लेते रहे। नेतरहाट रांची से सिर्फ 140 किमी है और कार से जाने पर ज्यादा से ज्यादा चार घंटे का समय। लिहाजा तय हुआ कि नेतरहाट ही चलेंगे। राजेंद्र का पूरे झारखंड में अपना नेटवर्क है। उन्होंने लोहरदगा के एक पत्रकार साथी से नेतरहाट का फारेस्ट बंगला रिजर्व कराने को कहा लेकिन पता चला कि वहां जनरेटर नहीं है और पानी की भी दिक्कत है। अब दूसरा विकल्प था पलामू बंगला जो लातेहार जिला परिषद के नियंत्रण में है। लातेहार के एक वरिष्ठ पत्रकार साथी की मदद से यह बंगला दो दिन के लिए बुक कराया गया।</span></span></div><div style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><br />
</span> </span></div><div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOOnxMoio7dDxLfQd4kTN3RHu4Z-VFWsfz8xQpk-9hAalvtbdzWENCepI9x8sh0sm49AFHkDLFNuJegVIVbNirCw__7U6r_OAan5X0qHXdrCFiIYPFteEjwedxT3HxH5v7xCq6dtWQUZo/s1600/netarhat+2oct+2010+002.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgOOnxMoio7dDxLfQd4kTN3RHu4Z-VFWsfz8xQpk-9hAalvtbdzWENCepI9x8sh0sm49AFHkDLFNuJegVIVbNirCw__7U6r_OAan5X0qHXdrCFiIYPFteEjwedxT3HxH5v7xCq6dtWQUZo/s320/netarhat+2oct+2010+002.JPG" width="320" /></span></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><br />
</span> </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEipk2BoXlMGO6RB4ihpbYxvWpB9l9kVORi6JM7Gi4UKmqRHWG6FhmHCqm4eCuYvpM9p9MUWidmaKR8DA5ULAdSbE3ZwZH5UgJS_PCtmQnK-eiXzb1T3C5fSDZqXM8a2vWuY0UtmFklxzkE/s1600/netarhat+2oct+2010+006.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEipk2BoXlMGO6RB4ihpbYxvWpB9l9kVORi6JM7Gi4UKmqRHWG6FhmHCqm4eCuYvpM9p9MUWidmaKR8DA5ULAdSbE3ZwZH5UgJS_PCtmQnK-eiXzb1T3C5fSDZqXM8a2vWuY0UtmFklxzkE/s320/netarhat+2oct+2010+006.JPG" width="320" /></span></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><br />
</span> </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6uQE8NBePwIqQurCqO0PyhV52uCkVZVypOkAzMGEndwbJtpEp7-6lPHhLYFhDIlZckbQSVAnFeCPF0IPFaKhcaVgGJZXI2XdaGr0Nx5KfxqpY-jSqwy4hjtekvdl0qsB79-QfOP34OpU/s1600/netarhat+2oct+2010+020.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi6uQE8NBePwIqQurCqO0PyhV52uCkVZVypOkAzMGEndwbJtpEp7-6lPHhLYFhDIlZckbQSVAnFeCPF0IPFaKhcaVgGJZXI2XdaGr0Nx5KfxqpY-jSqwy4hjtekvdl0qsB79-QfOP34OpU/s320/netarhat+2oct+2010+020.JPG" width="320" /></span></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><br />
</span> </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqxjFAdTRp6cgQipEOsWPvUDAuoZhOZFqYAIvHTxffTbWm75chppo-L_fSJRWO3hVO4V9DfLLv5KIiOHQLh01SOaSNeTkuc4Xd7VDlCoe3lG7UqmVHOkU2GOMuVD7w62WD7cYDMmWwjuY/s1600/netarhat+2oct+2010+029.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiqxjFAdTRp6cgQipEOsWPvUDAuoZhOZFqYAIvHTxffTbWm75chppo-L_fSJRWO3hVO4V9DfLLv5KIiOHQLh01SOaSNeTkuc4Xd7VDlCoe3lG7UqmVHOkU2GOMuVD7w62WD7cYDMmWwjuY/s320/netarhat+2oct+2010+029.JPG" width="320" /></span></span></a></div><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><br />
</span> </span><br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;"><a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_WbJ0tdQqYkxehyN09WUBmDrjeymnEjDYf6CY3sS-0YBz4JC8hf2LRetX-KYIyeRGLAbmSTm9jNWvYlIODAslF4zsm8_-J-7j7MgkteKYBEy-5RmeJISK62ExLQcBfpKXQTfhK9DWdlE/s1600/netarhat+2oct+2010+046.JPG" imageanchor="1" style="margin-left: 1em; margin-right: 1em;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><img border="0" height="213" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj_WbJ0tdQqYkxehyN09WUBmDrjeymnEjDYf6CY3sS-0YBz4JC8hf2LRetX-KYIyeRGLAbmSTm9jNWvYlIODAslF4zsm8_-J-7j7MgkteKYBEy-5RmeJISK62ExLQcBfpKXQTfhK9DWdlE/s320/netarhat+2oct+2010+046.JPG" width="320" /></span></span></a></div><div style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">शुक्रवार को दोपहर एक बजे रांची से नेतरहाट के लिए निकलने की योजना बनी। हम तैयार थे कि राजेंद्र को याद आया कि अपनी दोनों कारों का इंश्योरेंस सितंबर में खत्म हो गया है। तो इंश्योरेंस रिन्यू कराने में थोड़ा समय लगा और हम ढाई बजे रांची से निकल पाए। रातू, मांडर और कुड़ू होते हुए हम करीब शाम 4 बजे लोहरदगा पहुंचे। रास्ता बहुत खराब था। कई जगह सड़क टूटी हुई थी लिहाजा समय ज्यादा लगा। हम लोगों ने सोचा था कि लंच कुडू के पास एक लाइन होटल में करेंगे लेकिन देर होने की वजह से हमने लंच ड्राप कर दिया। आपको बताते चलें कि इस इलाके में हाईवे पर स्थिति ढाबों को लाइन होटल कहते हैं। लोहरदगा में विभिन्न अखबारों के पत्रकार साथी मिले। वे राजेंद्र से जानना चाहते थे कि वह कौन सा अखबार ज्वाइन कर रहे हैं। दरअसल राजेंद्र हिंदुस्तान के झारखंड संपादक थे। पिछले दिनों स्थानांतरण की वजह से उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। इन पत्रकार साथियों ने हमारे लिए एक स्थानीय होटल में लंच की तैयारी कर रखी थी। इस आग्रह को टाला न जा सका लिहाजा और देर हो गई। चलते समय एक पत्रकार साथी भी हमारे साथ हो लिए। रात को नेतरहाट जाना जोखिम भरा माना जाता है क्योंकि आसपास का पूरा इलाका नक्सल प्रभावित है और थाना आदि उड़ाए जाने के किस्से यहां आपको डराने के लिए काफी हैं। लेकिन राजेंद्र ने कहा कि जब हम फरवरी 2002 में रात को एक बजे जम्मू-कश्मीर में उस समय के सबसे खतरनाक इलाके में स्थित गुलमर्ग जा सकते थे तो यहां क्या। फिर हम पत्रकार हैं, हमसे किसी की क्या दुश्मनी।</span></span></div><div style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">करीब 5.30 बजे हम लोहरदगा से नेतरहाट के लिए निकले। घाघरा पहंचते हुए अंधेरा छा गया और अभी हम करीब 60 किमी दूर थे। रास्ते में हमें सिर्फ बाक्साइट भरे ट्रक आते ही दिखाई दिए बाकी कोई आवागमन नहीं था। बिशुनपुर पार करते-करते पूरी तरह से अंधेरा हो गया। मुझे डर लग रहा था लेकिन मैं कुछ बोल नहीं रही थी। बनारी पार करने के बाद शुरू हुआ पहाड़ी रास्ता। भीगी सड़क देखकर लग रहा था कि यहां थोड़ी देर पहले बारिश हुई है। रास्ता बहुत अच्छा नहीं था। सड़क टूटी हुई थी और जगह-जगह पत्थर और कीचड़ था। हम ठीक सवा सात बजे नेतरहाट पहुंचे। राजेंद्र की ड्राइविंग की एक बार फिर दाद देनी होगी कि हम मानकर चल रहे थे कि आठ बजे नेतरहाट पहुंचेंगे लेकिन हम जल्दी पहुंच गए।</span></span></div><div style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><br />
</span> </span></div><div style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">थोड़ा समय पलामू बंगला ढूंढ़ने में लगा। वहां महुआडांड़ के पत्रकार साथी लिली हमारा इंतजार कर रहे थे। उन्होंने हम लोगों को देखकर राहत की सांस ली। वहां के सेवक जीतन किसान ने बेहतरीन गरमा-गरम चाय हमें पिलाई। जो थोड़ी-बहुत थकान थी वह काफूर हो गई। नेतरहाट का सूर्योदय और सूर्यास्त बहुत खूबसूरत होता है और नेतरहाट इसके लिए जाना जाता है। जीतन ने बताया कि सूर्योदय पलामू बंगला प्रांगण में बने वाच टापर से ही देखा जा सकता है या फिर पास के प्रभात होटल से। हम लोगों ने तय किया सुबह वाच टावर पर सूर्योदय देखते हुए सुबह की चाय पिएंगे।</span></span></div><div style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;"><br />
</span> </span></div><div style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif;"><span class="Apple-style-span" style="color: #38761d;"><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">(जारी)</span></span></div><div style="border-collapse: collapse; font-family: arial, sans-serif; font-size: 15px;"><br />
</div>वीना श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/09586067958061417939noreply@blogger.com21tag:blogger.com,1999:blog-6252644964703171161.post-81469121907827925132010-07-11T03:15:00.000-07:002010-07-11T04:33:32.087-07:00धोनी के नाम खतप्रभातखबर में आज एक पाठक का पत्र छपा है जो बहुत ही रोचक है मैने सोचा आप सबको भी पढ़वाना चाहिए। ये पत्र है पीयूष पांडे का।<div>प्रिय माही भइया,</div><div>आपको शादी की बहुत-बहुत मुबारकबाद, क्या धांसू सीक्रेट अंदाज में शादी रचाई, आपके पीछे लगे जासूस टाइप के फन्नेखां पत्रकार देखते रह गए। एक-दो खोजी पत्रकारों ने आप दोनों की शादी की दो-तीन तस्वीरें जरूर जुगाड़ लीं वरना हलवाई, फूल बेचनेवाला और टैक्सीवाला ही आपकी शादी के ब्रांड एम्बेसडर थे।</div><div>शादी का वर्ल्ड कप आपने जीत लिया लेकिन अब आपको समझ आ जाएगा कि क्रिकेट खेलने से भी मुश्किल काम और हैं। ब्रेट ली का बाउंसर झेलना आसान है, पत्नी की फिरकी सहना मुश्किल। यकीं न हो तो आप एक बार साक्षी भाभी का जन्मदिन भुलकर देख लेना। अगले दिन एक ही बॉल में इन स्विंग, ऑफ स्विंग, बाउंसर सब झेलने पड़ जाएंगे।</div><div>खैर इससे हमें क्या, आप बड़े क्रिकेटर हैं बाउंसर झेलना जानते हैं लेकिन बेचारे पत्रकार वो कहां जाने बाउंसर झेलना। आपने पहले सगाई का बाउंकर फेंका फिर शादी का इन स्विंगर, माइक-कैमरा पकड़े सब बोल्ड हो गए।पत्रकारों से इतनी बेरुखी भी अच्छी नहीं थी। उन्हें तो आर्डर मिला था कि दिखाओ तस्वीरें और आपने अपनी शादी के दौरान रिसार्ट के भीतर तो क्या दरवाजे तक नहीं पहुंचने दिया. इतना घमंड भी अच्छा नहीं।</div><div>भइया ऐसा इसलिए कह रहा हूं क्योंकि इस बेरुखी के चक्कर में टीवी पत्रकारों को जैसे-तैसे. कैसे-कैसे अपनी रिर्पोट दिखानी पड़ी और हम दर्शकों को क्या-क्या झेलना पड़ा यकीं न हो तो चंदामामा न्यूज के रिपोर्टर की सुनिए</div><div>`अब मैं खड़ा हूं विश्रांति रिसोर्ट के बाहर, हमारे साथ हैं..वो बर्तन साफ करने वाले भाई साहब, जिन्होने धोनी की शादी के बाद बर्तनों को साफ किया। </div><div><b>भाई साहब, किस तरह के पकवान बने थे शादी में ?</b></div><div>छप्पन भोग थे लेकिन मैं चख नहीं पाया, इसलिए स्वाद नहीं बता पाऊंगा।</div><div>अब हम बात करते है झाड़ू लगाने वाले से , जिसने उस मंडप पर झाड़ू लगाई, जिस पर धोनी और साक्षी बैठे थे</div><div><b>तो भाई साहब क्या झाड़ू लगाने के बाद कुछ मिला और अब आपको कैसा महसूस हे रहा है ?</b></div><div>जनाब बड़े ही शातिर थे बाराती। न्यौछावर सारी बीन ले गए। गले टूटे-फूलों के अलावा कुछ नही मिला, हां झाड़ू लगाने के बाद मुझे बहुत अच्छा महसूस हो रहा है क्योंकि कूड़े से भी धांसू-धांसू टाइप की खुशबू आ रही थी। क्षमा कीजिए अचानक कुछ वक्त की कमी है क्योंकि अब हमें रांची चलना है, जहां से खबर है धोनी हवाई जहाज से उतरने वाले हैं।</div><div>माही भइया, इस रिपोर्ट को पढ़ने के बाद उम्मीद है आप इस बार किसी कार्यक्रम में पत्रकारों पर बंदिश नहीं लगाएगें वरना......हम दर्शकों को झूठे बर्तन, टूटे फूल और बिखरा फर्नीचर ही दिखाएंगे।</div><div><b>ये थी वह रिपोर्ट...पीयूष जी ने जो बात उठाई वह सच है लेकिन सबकी अपनी प्राइवेसी है जो होनी चाहिए....सेलिब्रिटी का यह मतलब हरगिज नही कि मीडिया वाले सारी प्राइवेसी ही भंग करदें लेकिन ये भी सच है जो जनता इतना प्यार देती है उसको नजरंदाज किया जाए....वो भी अपने चहेते सेलिब्रटी के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहती है। उसकी भी भावनाओं की कद्र होनी चाहिए।</b></div>वीना श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/09586067958061417939noreply@blogger.com4tag:blogger.com,1999:blog-6252644964703171161.post-90993020513696620852009-11-05T02:54:00.000-08:002009-11-05T02:59:31.787-08:00क्योंकि मैं एक पवित्र..... बांके बिहारी लाल की जय<p class="MsoNormal"><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">क्योंकि मै एक पवित्र नगरी मथुरा धाम से आया हूं। एक बार अपनी जिह्वा को पवित्र करके बोलिए बांके बिहारी लाल की जय। ये जयकारा था सारेगामापा लिटिल चैम्प हेमंत ब्रजवासी का। भइया हम और बाकी प्रतिभागी क्या किसी अपवित्र नगरी से हैं</span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">? </span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">हेमंत बबुआ क्या हमारे भारत के सारे राज्य और उनके सारे शहर अपवित्र हैं, केवल एक ही पवित्र नगरी बची है मथुरा। मथुरा को क्या वरदान मिला था कि कलियुग में एकमात्र नगरी मथुरा ही बचेगी जो पवित्र होगी। काशी वो नगरी है कहा जाता है जहां मात्र जन्म लेने पर सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। विश्वनाथबाबा के दशर्न से कठोर से कठोर पाप भी धुल जाते हैं। इंदौर वह नगरी है जिसके आस-पास महाकाल- ओंकारेश्वर जैसे पवित्र धाम हैं। कोलकाता, काली मां की पवित्र धरती । हमारे भारत में कौन सा ऐसा शहर है जहां किसी देवी-देवता का पवित्र धाम न हो, किसी भी धर्म का कोई न कोई धार्मिक स्थान जरूर होगा। ऐसे में किसी खास जगह का नाम लेना क्या क्षेत्रवाद को बढ़ावा देना नहीं है</span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">?</span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> क्या हेमंत बाबू और उनके पिताश्री हमें बताएंगे कि जिह्वा को पवित्र कैसे किया जाता है ताकि हम अपनी इस अपवित्र जिह्वा को पवित्र कर सकें. लगे हाथ पापों से मुक्ति का मार्ग भी बताएं। बहुत से पापियों करा उद्धार हो जाएगा। ऐसे देखा जाए तो अपनी तो कोई नगरी नहीं क्योंकि मेरा जन्म हाथरस में हुआ, मोदीनगर, मेरठ, अमरोहा, रामपुर, मुरादाबाद, लखनऊ, बाराबंकी, इलाहाबद में रही, पली-बढ़ी। शादी के बाद दिल्ली, जम्मू, भोपाल, पानीपत, इंदौर, रही। इंदौर वह नगरी है जहां भगवान गणेश की बहुत मान्यता है। वहां कोई भी कार्य बिना खजराना गणेश मंदिर जाए बिना शुरू नहीं होता। अब आप ही बताएं मैं किस नगरी की हूं ताकि आपकी जिह्वा को मैं भी पवित्र करवाकर बुलवाऊं शाह विलायत शाह की जय, शाहमीना शाह दरगाह की जय, देश को काका, निर्भय, वीरेंद्र तरुण, बोहरा जी जैसे ख्याति प्राप्त कवि देने वाली एक मात्र रस वाली नगरी हाथरस की जय, देवा शरीफ बाबा की जय, खजराना वाले गणपति की जय या गंगा-यमुना-सरस्वती का संगम कराने वाली नगरी इलाहाबाद की जय। शायद मेरा ज्ञान कुछ कम है। बस एक ही बात महत्वपूर्ण है कि हम हिंदुस्तान में रहते हैं। कोना कोई भी हो, है तो हिंदुस्तान ही न</span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">?</span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> </span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><o:p></o:p></span></span></p> <p class="MsoNormal"><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><o:p><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> <span class="Apple-style-span" style="font-family: Mangal; ">मुझे याद है जब पापा का तबादला अमरोहा हुआ तो स्कूल भी बदला। नई क्लास में मेरा परिचय कराया गया। पीरियड खत्म होने के बाद एक लड़की मेरे पास आई और बोली हलो, प्लीज टू मीट यू, माई सेल्फ इज आलसो कायस्थ, चलो क्लास में एक से दो हुए। तुम श्रीवास्तव और मैं सक्सेना। मेरी समझ में नहीं आया कि हम दोनो कायस्थ लड़कियां मिलकर कौन-सा तीर मार लेंगी। मैने घर जाकर पापा को बताया तो मेरे पापा ने कहा कि कह दिया होता मैं तो हिंदुस्तानी हूं और यही पहचान है मेरी। शायद वही सीख है कि मैं कभी जाति-क्षेत्रवाद में नहीं पड़ी। मैं हिंदुस्तान में रहती हूं और हिंदुस्तानी हूं। इंसानियत मेरा धर्म है, दोस्ती और प्यार मेरा ईमान।</span></span></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><o:p><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> <span class="Apple-style-span" style="font-family: Georgia, serif; font-size: 16px; "><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">आज तक हम क्यों क्षेत्रवाद, भाषावाद, जातिवाद, धर्मवाद, ऊंच-नीच इन सब विचारों से उबर नहीं पाए हैं</span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">?</span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> इन शब्दों पर क्यों हम अटक जाते हैं</span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">?</span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> क्यों हम आपस में बैर पाले हैं</span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">?</span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> क्यों अपने इर्द-गिर्द नफरतों का जाल बुनकर बैठे हैं</span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">?</span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> आपस के बैर में ईश्वर, खुदा, रब, गाड, अल्लाह, को अलग करके देखते हैं</span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">,</span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> उसकी सीख, प्यार, उसकी बनाई दुनिया को भूल गए। हमारे लिए हमारे खुद के बनाए नियम एहमियत रखने लगे, उस परमपिता परमेश्वर का अस्तित्व कुछ नहीं। प्यार करने के तरीके क्या अलग होते हैं</span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">?</span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> क्या हिंदुओं में अलग तरह से प्यार होता है और सिख, ईसाई, मुसलमानों में अलग तरह से, जैसे प्यार-प्यार होता है वैसे ही इबादत-इबादत होती है</span></span><span lang="HI" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> </span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">और प्यार तो खुद एक पूजा है। इंसानियत तो सबसे बड़ा धर्म है। हमारे रास्ते अलग हो सकते हैं लेकिन मंजिल तो एक है। फिर किसलिए किसी खास शहर, धर्म, भाषा का प्रचार</span></span><span style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">?</span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> इसलिए मेरी गुजारिश है कि आने वाले कार्यक्रमों में क्षेत्रवाद को बढ़ावा न दिया जाए। हमने हिंदुस्तान में जन्म लिया है, हमें गर्व से कहना चाहिए कि हम हिंदुस्तानी हैं। </span></span></span></span></o:p></span></p>वीना श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/09586067958061417939noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6252644964703171161.post-70085710562052585652009-10-28T02:25:00.000-07:002009-10-28T02:33:02.847-07:00क्या दुष्कर्म, हत्या जघन्यतम अपराध नहीं?<p class="MsoNormal" style="text-align: justify;"><span class="Apple-style-span" style="font-family: Mangal; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">महिलाओं के प्रति हो रहे अपराधों में कमी तो आ नहीं रही है अलबत्ता कठोर सजा मिलने की अपेक्षा सजा कम जरूर हो रही है। आज ही यह खबर छपी है कि दिल्ली हाईकोर्ट ने हत्या, बलात्कार, हत्या के प्रयास, और लूटपाट करने वाले एक नौकर को निचली अदालत से मिली मौत की सजा को जघन्यतम अपराध न होने के कारण 25 साल के सश्रम कारावास में तब्दील कर दिया गया है।</span></span></p> <p class="MsoNormal"><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><o:p><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: Georgia, serif; "><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><b>क्या माननीय हाई कोर्ट इस पर प्रकाश डाल सकता है कि जघन्यतम अपराध कौन से हैं</b></span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><b>?</b> </span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> एक नाबालिग लड़की के साथ दुष्कर्म, 4 साल के छोटे से बच्चे की हत्या क्या जघन्य अपराध नहीं है। हां इससे ज्यादा जघन्य ये होता कि जब दुष्कर्म के बाद उस लड़की की हत्या कर दी जाती और फिर छोटी बेटी के साथ भी यही होता। क्या न्यायाधीश महोदय की संवेदनाएं शून्य हो गई हैं</span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">?</span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> या अपराधी के वकील के अपनी कोई बेटी या बेटा नहीं है। क्या वकील को उन मां-पिता की आंखों का दर्द या आंसू नहीं दिखे। जिसने अपना इकलौता बेटा खोया है, अपनी बेटी के जीबन के साथ खिलवाड़ देखा है उनके या अन्य किसी के लिए भी इससे ज्यादा जघन्य और क्या हो सकता है</span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">? </span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> वकील साहब ने तो मोटी रकम ली होगी। मगर ऊपर की अदालत में ये रकम काम नहीं आएगी और न वो घर, न बीवी-बच्चे जिनके लिए ये सब किया और खुद के लिए भी किया है तो भी इसकी सजा स्वयं भुगतनी होगी। एक लड़के ने जघन्य अपराध किया उलकी सजा दिलवाकर कम से कम उन माता-पिता को थोड़ी शांति तो दे दी होती कि उनके परिवार को बिखेरने वाले को मौत की सजा मिली। वो केवल यहां की अदालत में बचा है ईश्वर की अदालत में उसे कौन बचाएगा</span></span><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">? </span></span><span lang="HI" style="font-family: Mangal; color: black; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><b>अगर उसे मौत की सजा मिलती तो शायद कोई तो इस तरह का अपराध करने से पहले सोचता। दुष्कर्म जैसे अपराध के लिए तो केवल एक ही सजा होनी चाहिए मौत की सजा. ताकि नारी कि इज्जत को खिलौना समझने वाले ये जाने कि वो भी बचेंगे नहीं। </b>मैं इस फैसले को जरूर पढ़ूंगी।</span></span></span></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span lang="EN-GB" style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><o:p><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: Mangal; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"><b>यही नहीं मणिपुरी युवती की हत्या का केस भी इसी दिशा की तरफ जा रहा है, </b>उसे भी थोड़ी सी सजा मिल जाएगी क्योंकि अभी से अखबार में ये आने लगा कि अपराधी आई. आई. टी. छात्र पुष्पम का व्यवहार ठीक नहीं था और इसी का लाभ उठाकर वकील उसे बचाएगा, कोर्ट थोड़ी सजा देकर मुक्त हो जाएगा लेकिन उसके घरवालों के बारे में कोई नहीं सोचेगा और जेल से बाहर आकर वो अपराधी फिर किसी की इज्जत के साथ खिलवाड़ करेगा और हत्या करेगा।</span></span></o:p></span></p> <p class="MsoNormal"><span style="font-family: 'Courier New'; color: black; "><o:p><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;"> </span><span class="Apple-style-span" style="font-family: Mangal; "><span class="Apple-style-span" style="font-size: medium;">राजा-महाराजाओं के समय ठीक होता था जो कठोर दंड होते थे। अमानवीय थे लेकिन फिर किसी और की वो अपराध दोबारा करने की हिम्मत नहीं होती थी। अब जरूरत ऐसे ही फैसलों की है जिससे समाज में महिलाओं के प्रति बढ़ रहे अपराधों पर अंकुश लग सके। <b>आज 6 माह की, ढाई साल, 8 साल की बच्ची, किशोरी, युवा, प्रौढ़ा यहां तक वृद्धा तक सुरक्षित नहीं है। जिस घर में बेटी होती है उस घर की मां की, महिलाओं की नींद उड़ी रहती है। बेटी की वजह से नहीं बल्कि उसकी सुरक्षा को लेकर और समाज में पल रहे दरिंदों को लेकर। </b></span></span></o:p></span></p>वीना श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/09586067958061417939noreply@blogger.com1tag:blogger.com,1999:blog-6252644964703171161.post-18515664097871460122009-10-26T00:45:00.000-07:002009-10-26T03:43:44.346-07:00`सच का सामना' या व्यक्ति को नग्न करने खेल<b><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> <span class="Apple-style-span" style="font-weight: normal;">मैं अपने नए ब्लाग </span>शिकंजी <span class="Apple-style-span" style="font-weight: normal;">के साथ अपने ब्लाग मित्रों के बीच हूं । इसमें आपको </span>कुछ मीठी-कुछ खट्टी टिप्पणियों के साथ समाज की वास्तविकता भी देखने को मिलेगी। <span class="Apple-style-span" style="font-weight: normal;">हौसलाफजाही के रूप में </span>आप की राय व टिप्पणियां <span class="Apple-style-span" style="font-weight: normal;">भी मिलती रहीं तो मनोबल तो बढ़ेगा साथ ही मैं और भी बेहतर कर सकूंगी।</span></span></b><div><b><br /></b></div><div><b><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"><span class="Apple-style-span" style="font-weight: normal;"> <b><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">`सच का सामना',</span></b><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> आपने ठीक समझा यह उसी कार्यक्रम के बारे में है जो स्टार प्लस पर प्रसारित हुआ था। उसकी आखिरी कड़ी के दो-तीन दिन बाद आपकी अदालत में रजत शर्मा ने सच का सामना के प्रस्तुतकर्ता राजीव खंडेलवाल, प्रश्न तैयार करने वाले सिद्धार्थ बसु और कुछ प्रतिभागियों को बुलाया था। उसके बाद मैने यह लेख लिखा था और 29 सितम्बर को दिल्ली के एक प्रतिष्ठित हिंदी अखबार को ई.मेल द्वारा भेजा था, 24 अक्टूबर को जब मैने उनसे फोन पर बात की तो उनका जवाब था कि मेरे पास रोज इतने लेख आते हैं सबको देखना बहुत मुश्किल है। इसके लिए तो एक आदमी रखना पड़ेगा।</span></span></span></b><div><div><br /></div><div><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> अखबार से पाठक नहीं होते बल्कि पाठकों से अखबार होता है। ना तो मै अखबार का नाम लेना चाहती नहीं व्यक्ति विशेष का। मैं हिंदी अखबारों में चल रही अव्यवस्था के खिलाफ बताना चाह रही हूं। मैंने भी 11-12 साल अखबार में काम किया है। तब शायद इतनी खराब व्यवस्था नहीं थी, पाठकों से इस तरह बात नहीं की जाती थी। आज क्या वजह है जो पाठकों से इस तरह से बात की जाती है कि</span><b><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> इसके लिए हमें एक आदमी रखना पड़ेगा। </span></b><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">यह समस्या पाठकों की नहीं है अखबार की है, वो कितने व्यक्ति रखे। लेखों की भी श्रेणी होती है जिनमें कुछ सम-सामयिक होते हैं और कुछ समय बाद उनकी उपयोगिता ही खत्म हो जाती है। ऐसे लेखों को पहले छापना होता है या उपयोगी न होने पर वापस कर दिया जाता है। अब तो ई.मेल का युग है कोई समस्या नहीं होनी चाहिए। लिखने वाले हजारों होते हैं अखबार को अनेक लेख मिलते हैं लेकिन लिखने वाले के लिए उसका अपना ही लेख होता है जिसमें उसकी भावनाएं होती हैं जो वह बांटना चाहता है। उम्मूद है अखबार में काम करने वाले पत्रकार भाई पाठकों की भावनाओं का ध्यान रखेंगे। वह लेख ब्लाग के पाठकों के लिए प्रस्तुत है।</span></div><div><div style="text-align: center;"><b><br /></b></div><div style="text-align: center;"><b>सच का सामना</b></div><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"></span><div><p class="MsoNormal"><span class="apple-style-span"><span lang="AR-SA" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">जिंदगी जीने का सबका अपना अंदाज होता है। अंदाज के साथ उसका अधिकार भी है ऐसे में किसी के भी अधिकार या अंदाज पर दखल देना कहां तक उचित है या उचित है भी या नहीं। जहां तक मैं समझती हूं </span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">और शायद ठीक ही समझती हूं</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="AR-SA" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> किसी भी व्यक्ति के पास अपने जीवन के अलावा कुछ भी निजी नहीं है। उस पर भी मीडिया सेंध मार चुका है। बची-खुची कसर हम लोग आपस में ही टांग खीचकर पूरी कर लेते हैं। मुद्दे पैदा करना और उलटी दिशा में चलना हमारी फितरत बन चुकी है। किसी का सही या गलत होना या हमारी सोच में सही</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">-</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="AR-SA" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">गलत का फैसला दोनों बातें अलग हैं। गलत को तो गलत ठहराया ही जाना चाहिए लेकिन दुख वहां होता है जहां केवल अड़ंगे लगाने के लिए</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">,</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="AR-SA" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">टांग खीचने के लिए सही को भी गलत ठहराया जाता है। अभी टी.वी.के स्टार प्लस चैनल पर एक कार्यक्रम प्रसारित हुआ </span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">`</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="AR-SA" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">सच का सामना</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">’</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">। इसके साथ ही शुरू हुई मुद्दों की श्रंखला। पहला मुद्दा सामाजिक मान्यता बना। हम किन सामाजिक मान्यताओं की बात करते हैं जो हमने अपनी सोच और फायदे के अनुसार निर्धारित की है। इधर आने वाले सभी सीरियलों में किन सामाजिक मान्यताओं का ध्यान रखा जाता है। विवाह पूर्व व विवाह के बाद संबंधों को दिखाना आम बात है। शादी के कुछ वर्षों कहीं से एक लड़का या लड़की का आना और घर की शालीन व प्रिय बहू का बेटा या बेटी होने का दावा करना, जो बाद में सही निकलता है। शादी के बाद प्रेम संबंधों का होना कुछ नया नहीं। रजत शर्मा ने भी सच का सामना को लेकर</span></span></span><span class="apple-style-span"><span style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">`</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">आपकी अदालत</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">’</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> में यही मुद्दे बार-बार उठाए। बच्चा गिराना, गर्भवती होना जैसे शब्दों को और उनके बारे में आज छोटे-छोटे बच्चे भी जानते हैं। छठी-सातवीं में पढ़ने वाले बच्चे सेक्स करते हैं। टीवी पर दिखाई एक रिपोर्ट में जब लड़कों से पूछा गया कि आप लोग सैक्स करतें हैं तो उनका जवाब था</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">`</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">हां, जब ये पूछा गया कि क्या लड़कियों के साथ आप जबरदस्ती करते हैं या बहलाते-फुसलाते हैं। तो उन्होने कहा वो अपनी मर्जी से करती हैं हम जबरदस्ती नहीं करते और लड़कियों से पूछने पर उन्होंने धड़ल्ले से कहा जब लड़के कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं, गोया ये कोई प्रतियोगिता है या कंधे से कंधा मिलाकर चलने की प्रतिबद्धता। ये हैं हमारे आज के समाज के बच्चे। कहां गईं सामाजिक मान्यताएं। जब टी.वी. चैनल पर दिल्ली के ही कुछ स्कूलों के बारे में ये रिपोर्ट दिखाई गई तब रजत शर्मा ने उन स्कूलों के प्रधानाचार्य या प्रबंधन को आपकी अदालत में क्यों नहीं घसीटा </span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">?</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> जिन स्कूलों में शिक्षक छात्र-छात्राओं का यौन शोषण करते हैं उन स्कूलों के प्रबंधन को क्यों कटघरे में खड़ा नहीं किया जाता। जहां तक </span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">`</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">सवाल सच</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">‘</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> का सामना का है उसका समय भी रात दस बजे का था जब बच्चों के सोने का समय होता है उस दौरान स्क्रीन पर लगातार चलता है कि अविभावकों की निगरानी आवश्यक है और यदि बच्चे कहना नहीं मानते तो आप उन्हें क्या सीख देंगे और बाद में उसका समय 11 बजे कर दिया गया।</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> </span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"><o:p></o:p></span></span></span></p> <p class="MsoNormal"><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">अब जरा उस कार्यक्रम पर भी चर्चा करें। उस कार्यक्रम में हमें क्या परोसा जा रहा था। सच का सामना करने वाले हर व्यक्ति से शारीरिक संबंधों के बारे में जरूर पूछा गया। महिला से उसके पति के सामने पूछा गया कि कहीं और शादी होती तो आप ज्यादा खुश होतीं</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">?</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> क्या तलाक हो चुका है</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">?</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> ये कैसा जीवन है जहां शादी के डेढ़ साल बाद गुपचुप ढंग से तलाक ले लिया जाता है और घर वालों को पता भी नहीं चलता। इसके बावजूद साथ रहें और गर्ल फ्रैंड छूटने का इंतजार रहे। जहां हुसैन साहब जैसे कलाकार अपनी बेटी से छोटी उम्र की लड़की से शारीरिक संबंधों को स्वीकार करें। जहां व्यक्ति विशेष ये बताए कि जरूरत के लिए उसने समलैंगिक संबंध बनाए, पैसों के लिए शादीशुदा महिलाओं से संबंध बनाए। योगा सिखाने के बहाने उसने अपने क्लाइंट्स को सेक्स वर्कर् उपलब्ध करवाए और ये सब अपने माता-पिता, भाई की मौजूदगी में स्वीकार करे। क्या यही सामाजिक मान्यता है, लिहाज है। इतना सब जानने के बाद माता-पिता कैसे गले से लगा सकते हैं और वो कैसे उनकी नजरों का सामना कर सकता है। क्या यही शिक्षा हमें दी जाती है कि एक दिन इस तरह हम घरवालों का नाम रोशन करें, सबके सामने शर्मसार करें</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">?</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> </span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">बाबी डार्लिंग ये खुलासा करे कि उसके पुरुष मित्रों ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने चाहे। जहां धड़ल्ले से स्वीकार किया जाए कि शादी के बाद उनके शारीरिक संबंध कहीं और हैं। इस कार्यक्रम के जरिए लोगों को क्या संदेश दिया गया कि समाज में सैक्स ही सबकुछ है। किसी भी स्तिथि में, किसी भी उम्र में, इस भूख की न कोई सीमा है न अंत, न रिश्ते हैं न शर्म। ये आम चलन है आप भी सारी सामाजिक मान्यताओं को ताख पर रखकर बिंदास होकर सैक्स करिए और फिर रुपयों की खातिर रिश्तों को तार-तार करिए। उस मंच पर ऐसे प्रत्येक व्यक्ति का स्वागत हुआ जो किसी न किसी रूप से अनेक के साथ शारीरिक संबंधों से जुड़ा रहा। ये तो खुला आमंत्रण है जिसने जितने ज्यादा पाप किए हों (क्योंकि ये पुण्य तो हो नहीं सकता, हां, करने वालों की नजर में सही जरूर है क्योंकि ये उनका नजरिया है) आफिस में घपले किए हों, नकली व घटिया सामान सप्लाई किया हो और जो बेशर्मी से रुपयों के लिए सबके सामने स्वीकार कर सकता हो हां, मैने सारे गलत काम किए हैं और ये कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि ये सारे काम भी रुपयों के लिए ही किए गए। यानि जीवन का एकमात्र उद्देश्य येन-केन-प्रकारेण रुपया कमाना है। ये तो गलत काम को पुरुस्कृत करना जैसा हुआ। हो सकता है सीजन टू में वो महिलाएं आएं जो देह व्यापार करती हों और जिनको लोग पहचानते हैं उन्हें सबके सामने आकर स्वीकार करने से क्या गुरेज होगी</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">?</span><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"><o:p></o:p></span></span></span></p> <p class="MsoNormal"><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">आज से बीस साल पहले मैं एक ऐसी लड़की को जानती थी जिन्होने कई बार अपने शरीर का सौदा किया था। मैने उन्हें हमेशा दीदी कहा। आज भी मैं उनकी इज्जत करती हूं। हम लोग उस समय लखनऊ शिफ्ट हुए थे। मुझे मना किया गया था कि उनसे दूर रहूं। हालांकि मेरी मां भी उन्हें दोषी नहीं मानती थीं लेकिन बदनामी की हवा से सभी दूर रहना चाहते हैं। मैं छोटी जरूर थी मगर इतनी भी नहीं कि चीजें नहीं समझती थी। अगर मेरे जाने के बाद ये घटता तो मैं जरूर उनका साथ देती। उन्होने जो किया रुपए कमाने के लिए नहीं बल्कि अपनी बहन की जान बचाने के लिए। पहली बार वो पचास रुपए के लिए बिकी थीं, वो भी अपने चचेरे चाचा के हाथ। पिता ने लाखों की जायदाद बर्बाद कर दी थी। उनकी दो छोटी बहनें और एक पागल भाई था। बड़ी मुश्किल से वो इंटर कर पाई थीं। घर चलाने के लिए दीदी मोहल्ले के छोटे से स्कूल में पढ़ाती थीं। एक बार उनकी सबसे छोटी बहन को बुखार चढ़ा। वो बुखार से तप रही थी दवा के लिए रुपए नहीं थे। वो स्कूल के प्रिंसिपल के पास रुपए मांगने गई तो उन्होंने उनसे कीमत मांगी और दीदी खरी-खोटी सुनाकर वापस आ गईं लेकिन रात में उसकी तबियत बिगड़ गई और वो मदद मांगने अपने चचेरे चाचा के पास गईं और वहां उनके जीवन की पहली रात घटी जिसने फिर ऐसी कई रातें दीं। जिस लड़के को चाहती थीं उसने सब जानते हुए अपनाना चाहा लेकिन होने वाली सास के कारण उन्होने शादी नहीं की। फिर जब उन्हें पता चला कि उसी चाचा की गंदी नजरें उनकी छोटी बहन पर पड़ रही हैं तो अपनी बहन को बचाने के लिए लड़का ढूंढा और कम उम्र में ही उन्होने उसकी शादी कर दी ताकि उसकी इज्जत बच सके। लड़के का एक पैर जरूर खराब था लेकिन परिवार बहुत सम्पन्न था उन्होने अपनी बहन को इज्जत के साथ विदा किया। उनके बेशर्म पिता उनकी कमाई खाते रहे। पागलपन में भाई की मृत्यु हो गई। बीमारी में सबसे छोटी बहन चल बसी। उसके बाद पता चला कि उस लड़के ने उनसे शादी कर ली और उसके बाद उस मोहल्ले में कभी नहीं आई। अब पता नहीं वो किस गुमनामी के अंधेरे में गुम हो गई। खुद मजबूरी को भोगा मगर बहन को बचाया, जब दोनो भाई-बहन की मृत्यु हो गई तो खुद फाके किए मगर फिर बिकी नहीं। आज वो हैं भी या नहीं। मैं नहीं जानती मगर मैं उनको सलाम करती हूं। उन्होने हार नहीं मानी थी। उस प्रिंसिपल के आगे वो झुकी नहीं लेकिन तबियत बिगड़ने पर वो अपने चाचा के पास ही गईं थी और लूटने वाला अपना ही निकला। फिर भी उन्होने अपनी बहन पर आंच नहीं आने दी। छोटे भाई-बहन की मृत्यु के बाद उन्होने वह जगह ही छोड़ दी। वो कोई अकेली ऐसी लड़की नहीं हैं, बहुत होंगी जिन्होने अपने परिवार के लिए अपनी इज्जत का सौदा किया होगा क्योंकि बच्चे पैदा करने के बाद गरीबी के कारण माता-पिता पढ़ा नहीं पाते और हमारा तथाकथित समाज इन्हीं बातों का फायदा उठाकर लड़कियों को शिकार बनाता है। शायद भगवान ने बड़ी बहन को ये जज्बा देकर भेजा है कि छोटे भाई-बहनों के लिए वो कुरबान हो जाएं। लेकिन इसके बाद वो परिवार को शर्मसार नहीं करतीं लेकिन सेक्स वर्कर उपलब्ध कराना तो दलालों का काम है, धंधा है उनका। इसमें झूठ-सच क्या। क्योंकि वो दस लाख-पच्चीस लाख जीत रहे हैं तो माता-पिता दलाली जैसे गुनाह माफ कर रहे हैं। अगर वाकई में शर्मिंदगी है तो पहले अपने माता-पिता के सामने सच क्यों नहीं कुबूल किया। क्यों अब तक छुपाए रखा। ये भी सच है कि किसी को जबरदस्ती नहीं बुलाया गया था लेकिन ये कौन सा जौहर दिखाने का मंच था जहां पर उसके साहस या गुणों को परखा जा रहा था। जहां तक सामाजिक मान्यताओं और संस्कृति की बात है तो हमें रिश्तों का और महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जाता है। मंजिल पाने के लिए गलत रास्ता नहीं चुनने की सलाह दी जाती लेकिन शो का उद्देश्य क्या था कि जो जितने ज्यादा कपड़े उतारेगा, उतने ज्यादा रुपए ले जाएगा। जो नंगा हो जाएगा उसे एक करोड़ मिलेगा। ये तो कपड़े उतारने-उतरवाने का शो था। इससे ज्यादा कुछ नहीं।</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" text-transform: uppercase; font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"><o:p></o:p></span></span></span></p><p class="MsoNormal"><span class="Apple-style-span" style=" ;font-family:Mangal;"><b>इसे आप वीणा के सुर पर भी देख सकते हैं</b></span></p> <p class="MsoNormal"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> </span></span><span lang="EN-GB" style="Courier New"; mso-bidi-language:HIfont-family:";font-size:7.5pt;color:black;"><o:p></o:p></span></p></div></div></div></div>वीना श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/09586067958061417939noreply@blogger.com3tag:blogger.com,1999:blog-6252644964703171161.post-6556326477065536602009-10-21T00:30:00.000-07:002009-10-21T01:07:51.268-07:00`सच का सामना '<p class="MsoNormal"><span class="apple-style-span"><span lang="AR-SA" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">जिंदगी जीने का सबका अपना अंदाज होता है। अंदाज के साथ उसका अधिकार भी है ऐसे में किसी के भी अधिकार या अंदाज पर दखल देना कहां तक उचित है? और उचित है भी या नहीं? जहां तक मैं समझती हूं </span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">और शायद ठीक ही समझती हूं</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="AR-SA" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> किसी भी व्यक्ति के पास अपने जीवन के अलावा कुछ भी निजी नहीं है। उस पर भी मीडिया सेंध मार चुका है। बची-खुची कसर हम लोग आपस में ही टांग खीचकर पूरी कर लेते हैं। मुद्दे पैदा करना और उलटी दिशा में चलना हमारी फितरत बन चुकी है। किसी का सही या गलत होना या हमारी सोच में सही</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">-</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="AR-SA" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">गलत का फैसला दोनों बातें अलग हैं। गलत को तो गलत ठहराया ही जाना चाहिए लेकिन दुख वहां होता है जहां केवल अड़ंगे लगाने के लिए</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">,</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="AR-SA" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">टांग खीचने के लिए सही को भी गलत ठहराया जाता है। कुछ समय पहले टी.वी.के स्टार प्लस चैनल पर एक कार्यक्रम प्रसारित हुआ </span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">`</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="AR-SA" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">सच का सामना</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">’</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">। इसके साथ ही शुरू हुई मुद्दों की श्रंखला। पहला मुद्दा सामाजिक मान्यता बना। हम किन सामाजिक मान्यताओं की बात करते हैं जो हमने अपनी सोच और फायदे के अनुसार निर्धारित की है। इधर आने वाले सभी सीरियलों में किन सामाजिक मान्यताओं का ध्यान रखा जाता है। विवाह पूर्व व विवाह के बाद संबंधों को दिखाना आम बात है। शादी के कुछ वर्षों कहीं से एक लड़का या लड़की का आना और घर की शालीन व प्रिय बहू का बेटा या बेटी होने का दावा करना, जो बाद में सही निकलता है। शादी के बाद प्रेम संबंधों का होना कुछ नया नहीं। रजत शर्मा ने भी सच का सामना को लेकर</span></span></span><span class="apple-style-span"><span style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">`</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">आपकी अदालत</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">’</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> में यही मुद्दे बार-बार उठाए। बच्चा गिराना, गर्भवती होना जैसे शब्दों को और उनके बारे में आज छोटे-छोटे बच्चे भी जानते हैं। छठी-सातवीं में पढ़ने वाले बच्चे सेक्स करते हैं। टीवी पर दिखाई एक रिपोर्ट में जब लड़कों से पूछा गया कि आप लोग सैक्स करतें हैं तो उनका जवाब था</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">`</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">हां, जब ये पूछा गया कि क्या लड़कियों के साथ आप जबरदस्ती करते हैं या बहलाते-फुसलाते हैं। तो उन्होने कहा वो अपनी मर्जी से करती हैं हम जबरदस्ती नहीं करते और लड़कियों से पूछने पर उन्होंने धड़ल्ले से कहा जब लड़के कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं, गोया ये कोई प्रतियोगिता है या कंधे से कंधा मिलाकर चलने की प्रतिबद्धता। ये हैं हमारे आज के समाज के बच्चे। कहां गईं सामाजिक मान्यताएं। जब टी.वी. चैनल पर दिल्ली के ही कुछ स्कूलों के बारे में ये रिपोर्ट दिखाई गई तब रजत शर्मा ने उन स्कूलों के प्रधानाचार्य या प्रबंधन को आपकी अदालत में क्यों नहीं घसीटा </span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">?</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> जिन स्कूलों में शिक्षक छात्र-छात्राओं का यौन शोषण करते हैं उन स्कूलों के प्रबंधन को क्यों कटघरे में खड़ा नहीं किया जाता। जहां तक </span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">`</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">सवाल सच</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">‘</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> का सामना का है उसका समय भी रात दस बजे का था जब बच्चों के सोने का समय होता है उस दौरान स्क्रीन पर लगातार चलता है कि अविभावकों की निगरानी आवश्यक है और यदि बच्चे कहना नहीं मानते तो आप उन्हें क्या सीख देंगे और बाद में उसका समय 11 बजे कर दिया गया।</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> </span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"><o:p></o:p></span></span></span></p> <p class="MsoNormal"><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">अब जरा उस कार्यक्रम पर भी चर्चा करें। उस कार्यक्रम में हमें क्या परोसा जा रहा था। सच का सामना करने वाले हर व्यक्ति से शारीरिक संबंधों के बारे में जरूर पूछा गया। महिला से उसके पति के सामने पूछा गया कि कहीं और शादी होती तो आप ज्यादा खुश होतीं</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">?</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> क्या तलाक हो चुका है</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">?</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> ये कैसा जीवन है जहां शादी के डेढ़ साल बाद गुपचुप ढंग से तलाक ले लिया जाता है और घर वालों को पता भी नहीं चलता। इसके बावजूद साथ रहें और गर्ल फ्रैंड छूटने का इंतजार रहे। जहां हुसैन साहब जैसे कलाकार अपनी बेटी से छोटी उम्र की लड़की से शारीरिक संबंधों को स्वीकार करें। जहां व्यक्ति विशेष ये बताए कि जरूरत के लिए उसने समलैंगिक संबंध बनाए, पैसों के लिए शादीशुदा महिलाओं से संबंध बनाए। योगा सिखाने के बहाने उसने अपने क्लाइंट्स को सेक्स वर्कर् उपलब्ध करवाए और ये सब अपने माता-पिता, भाई की मौजूदगी में स्वीकार करे। क्या यही सामाजिक मान्यता है, लिहाज है। इतना सब जानने के बाद माता-पिता कैसे गले से लगा सकते हैं और वो कैसे उनकी नजरों का सामना कर सकता है। क्या यही शिक्षा हमें दी जाती है कि एक दिन इस तरह हम घरवालों का नाम रोशन करें, सबके सामने शर्मसार करें</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">?</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"> </span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">बाबी डार्लिंग ये खुलासा करे कि उसके पुरुष मित्रों ने उसके साथ शारीरिक संबंध बनाने चाहे। जहां धड़ल्ले से स्वीकार किया जाए कि शादी के बाद उनके शारीरिक संबंध कहीं और हैं। इस कार्यक्रम के जरिए लोगों को क्या संदेश दिया गया कि समाज में सैक्स ही सबकुछ है। किसी भी स्तिथि में, किसी भी उम्र में, इस भूख की न कोई सीमा है न अंत, न रिश्ते हैं न शर्म। ये आम चलन है आप भी सारी सामाजिक मान्यताओं को ताख पर रखकर बिंदास होकर सैक्स करिए और फिर रुपयों की खातिर रिश्तों को तार-तार करिए। उस मंच पर ऐसे प्रत्येक व्यक्ति का स्वागत हुआ जो किसी न किसी रूप से अनेक के साथ शारीरिक संबंधों से जुड़ा रहा। ये तो खुला आमंत्रण है जिसने जितने ज्यादा पाप किए हों (क्योंकि ये पुण्य तो हो नहीं सकता, हां, करने वालों की नजर में सही जरूर है क्योंकि ये उनका नजरिया है) आफिस में घपले किए हों, नकली व घटिया सामान सप्लाई किया हो और जो बेशर्मी से रुपयों के लिए सबके सामने स्वीकार कर सकता हो हां, मैने सारे गलत काम किए हैं और ये कोई बड़ी बात नहीं है क्योंकि ये सारे काम भी रुपयों के लिए ही किए गए। यानि जीवन का एकमात्र उद्देश्य येन-केन-प्रकारेण रुपया कमाना है। ये तो गलत काम को पुरुस्कृत करना जैसा हुआ। हो सकता है सीजन टू में वो महिलाएं आएं जो देह व्यापार करती हों और जिनको लोग पहचानते हैं उन्हें सबके सामने आकर स्वीकार करने से क्या गुरेज होगी</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style=" ;font-family:'Courier New';color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">?</span><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;"><o:p></o:p></span></span></span></p> <p class="MsoNormal"><span class="apple-style-span"><span lang="HI" style=" ;font-family:Mangal;color:black;"><span class="Apple-style-span" style="font-size:medium;">आज से बीस साल पहले मैं एक ऐसी लड़की को जानती थी जिन्होने कई बार अपने शरीर का सौदा किया था। मैने उन्हें हमेशा दीदी कहा। आज भी मैं उनकी इज्जत करती हूं। हम लोग उस समय लखनऊ शिफ्ट हुए थे। मुझे मना किया गया था कि उनसे दूर रहूं। हालांकि मेरी मां भी उन्हें दोषी नहीं मानती थीं लेकिन बदनामी की हवा से सभी दूर रहना चाहते हैं। मैं छोटी जरूर थी मगर इतनी भी नहीं कि चीजें नहीं समझती थी। अगर मेरे जाने के बाद ये घटता तो मैं जरूर उनका साथ देती। उन्होने जो किया रुपए कमाने के लिए नहीं बल्कि अपनी बहन की जान बचाने के लिए। पहली बार वो पचास रुपए के लिए बिकी थीं, वो भी अपने चचेरे चाचा के हाथ। पिता ने लाखों की जायदाद बर्बाद कर दी थी। उनकी दो छोटी बहनें और एक पागल भाई था। बड़ी मुश्किल से वो इंटर कर पाई थीं। घर चलाने के लिए दीदी मोहल्ले के छोटे से स्कूल में पढ़ाती थीं। एक बार उनकी सबसे छोटी बहन को बुखार चढ़ा। वो बुखार से तप रही थी दवा के लिए रुपए नहीं थे। वो स्कूल के प्रिंसिपल के पास रुपए मांगने गई तो उन्होंने उनसे कीमत मांगी और दीदी खरी-खोटी सुनाकर वापस आ गईं लेकिन रात में उसकी तबियत बिगड़ गई और वो मदद मांगने अपने चचेरे चाचा के पास गईं और वहां उनके जीवन की पहली रात घटी जिसने फिर ऐसी कई रातें दीं। जिस लड़के को चाहती थीं उसने सब जानते हुए अपनाना चाहा लेकिन होने वाली सास के कारण उन्होने शादी नहीं की। फिर जब उन्हें पता चला कि उसी चाचा की गंदी नजरें उनकी छोटी बहन पर पड़ रही हैं तो अपनी बहन को बचाने के लिए लड़का ढूंढा और कम उम्र में ही उन्होने उसकी शादी कर दी ताकि उसकी इज्जत बच सके। लड़के का एक पैर जरूर खराब था लेकिन परिवार बहुत सम्पन्न था उन्होने अपनी बहन को इज्जत के साथ विदा किया। उनके बेशर्म पिता उनकी कमाई खाते रहे। पागलपन में भाई की मृत्यु हो गई। बीमारी में सबसे छोटी बहन चल बसी। उसके बाद पता चला कि उस लड़के ने उनसे शादी कर ली और उसके बाद उस मोहल्ले में कभी नहीं आई। अब पता नहीं वो किस गुमनामी के अंधेरे में गुम हो गई। खुद मजबूरी को भोगा मगर बहन को बचाया, जब दोनो भाई-बहन की मृत्यु हो गई तो खुद फाके किए मगर फिर बिकी नहीं। आज वो हैं भी या नहीं। मैं नहीं जानती मगर मैं उनको सलाम करती हूं। उन्होने हार नहीं मानी थी। उस प्रिंसिपल के आगे वो झुकी नहीं लेकिन तबियत बिगड़ने पर वो अपने चाचा के पास ही गईं थी और लूटने वाला अपना ही निकला। फिर भी उन्होने अपनी बहन पर आंच नहीं आने दी। छोटे भाई-बहन की मृत्यु के बाद उन्होने वह जगह ही छोड़ दी। वो कोई अकेली ऐसी लड़की नहीं हैं, बहुत होंगी जिन्होने अपने परिवार के लिए अपनी इज्जत का सौदा किया होगा क्योंकि बच्चे पैदा करने के बाद गरीबी के कारण माता-पिता पढ़ा नहीं पाते और हमारा तथाकथित समाज इन्हीं बातों का फायदा उठाकर लड़कियों को शिकार बनाता है। शायद भगवान ने बड़ी बहन को ये जज्बा देकर भेजा है कि छोटे भाई-बहनों के लिए वो कुरबान हो जाएं। लेकिन इसके बाद वो परिवार को शर्मसार नहीं करतीं लेकिन सेक्स वर्कर उपलब्ध कराना तो दलालों का काम है, धंधा है उनका। इसमें झूठ-सच क्या। क्योंकि वो दस लाख-पच्चीस लाख जीत रहे हैं तो माता-पिता दलाली जैसे गुनाह माफ कर रहे हैं। अगर वाकई में शर्मिंदगी है तो पहले अपने माता-पिता के सामने सच क्यों नहीं कुबूल किया। क्यों अब तक छुपाए रखा। ये भी सच है कि किसी को जबरदस्ती नहीं बुलाया गया था लेकिन ये कौन सा जौहर दिखाने का मंच था जहां पर उसके साहस या गुणों को परखा जा रहा था। जहां तक सामाजिक मान्यताओं और संस्कृति की बात है तो हमें रिश्तों का और महिलाओं का सम्मान करना सिखाया जाता है। मंजिल पाने के लिए गलत रास्ता नहीं चुनने की सलाह दी जाती लेकिन शो का उद्देश्य क्या था कि जो जितने ज्यादा कपड़े उतारेगा, उतने ज्यादा रुपए ले जाएगा। जो नंगा हो जाएगा उसे एक करोड़ मिलेगा। ये तो कपड़े उतारने-उतरवाने का शो था। इससे ज्यादा कुछ नहीं।</span></span></span><span class="apple-style-span"><span lang="EN-GB" style="Courier New";text-transform: uppercase;mso-bidi-language:HIfont-family:";font-size:7.5pt;color:black;"><o:p></o:p></span></span></p>वीना श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/09586067958061417939noreply@blogger.com0tag:blogger.com,1999:blog-6252644964703171161.post-29104813151837985122009-10-01T08:15:00.001-07:002009-10-01T08:47:59.938-07:00मानव: तब और अब (चार कविताएं)<b><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">मानव: तब और अब-1</span></b><br /><br />हमसे बेहतर था<br />वो आदिमानव<br />जो नग्न था शरीर से<br />हम तो नग्न हैं आत्मा से<br /><br /><div>आत्मा<br />जो होता है परमात्मा का रूप<br />बदलता जा रहा है इसका स्वरूप<br />घट रही है<br />इसकी सूक्ष्मता<br />गौणता में<br />पवित्रता खोती जा रही है<br />व्याभिचार में<br />अनन्त से घिसटकर<br />सिमट गई है `मैं' में<br />नहीं धुल सकता अब मैल<br />गंगाजल से भी<br />कलुषिता मिटाने का<br />एक ही तो था आसरा<br />उसे भी नहीं छोड़ा<br />आधुनिक मानव ने<br />गंगा फिर भी दिखती है<br />कलुषित होते हुए<br />पर<br />मानव कपट को पहचानना<br />है उतना ही मुश्किल<br />जितना है<br />भाई को राखी बांधना<br />प्यार की पूजा करना<br />बच्चों में बचपन ढूंढना<br />जवानी की उम्र पहचानना<br />बुढ़ापे की सीमा जानना<br />मचलती आंखों के इशारे समझना<br />और<br />तन ढकने के लिए उठे<br />दो हाथों का फिसलना<br /><br /><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">मानव:तब और अब-2</span></b><br /><br />हमसे अच्छा था<br />वो आदिमानव<br />जिसके पास नहीं थे शब्द भावों के<br />मौन थी अभिव्यक्ति जिसकी<br /><br /></div><div>तब भी था प्यार<br />धरा पर<br />सभ्यता के सूत्र में<br />नहीं बंधा था प्यार<br />लेकिन ...<br />`वाइल्ड लव' में भी था बरकरार<br />जीवन का सुख<br />आज<br />`कल्चर्ड लव' में भी है<br />वहशीपन, दरिंदगी<br />मूक होते हुए भी<br />सम्मान था<br />भावों का<br />आज<br />नहीं बचा है<br />आधार रिश्तों का<br /> <br /><br /><br /><br /><b><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">मानव: तब और अब-3</span></b><br /><br />श्रेष्ठ था<br />वो आदिमानव<br />जो नहीं था सभ्य<br />हमारी तरह<br /><br /></div><div>फिर भी था<br />सभ्य मानव से<br />कहीं आगे<br />धीरे-धीरे प्रकृति ने<br />दिये शब्द औजारों के<br />लेकिन...<br />शब्द ढलते गए<br />खंजर में<br />भाव ढलते गए<br />कड़ुवाहट में<br />रह गई केवल<br />मन की कलुषता<br />पवित्र था मन<br />उस आदिमानव का<br />हम<br />आधुनिक होकर भी<br />लिपटे हैं मैल में<br />विष भरा है मन में<br />उगल रहे हैं जहर<br /><br /><br /><br /><span class="Apple-style-span" style="font-size: x-large;">मानव: तब और अब-4</span><br /><br /><br />धन्य था<br />वो आदिमानव<br />नहीं पनप सकी थी<br />संस्कृति जिसमें<br /><br /></div><div>वो था असंस्कृत होते हुए भी<br />सुसंस्कृत<br />हम हैं<br />सुसंस्कृत होते हुए भी<br />असंस्कृत<br />धीरे-धीरे मानव सभ्य हुआ<br />पनपे संस्कार<br />मानव छूता गया<br />आकाश की ऊंचाई<br />पार कर गया<br />असंख्य सीमाओं को<br />लेकिन<br />न जाने<br />कब पड़ा और पनपा-फूला<br />बीज निकृष्टता का<br />फलित हुआ तो जाना<br />नहीं बचे हैं मानव मूल्य<br />उस हजारों साल पहले के इंसान के<br />स्खलित हो गए हैं<br />विचार<br />पनप गए हैं बाल सूअर के<br />आंखों में<br />नहीं बचा है आधार<br />मानवता का<br />प्यार के नाम पर है छलावा<br />वो मानव<br />जो नहीं था सभ्य<br />रमा प्यार में<br />तो गन्धर्व विवाह किया<br />फूटने वाली नन्हीं कोपल को<br />दिया सम्मान और अपना नाम<br />आज दिया जाता है नाम<br />`नाजायज,'` हरामी' का<br />बिन ब्याही मां बनाकर<br />छोड़ दिया जाता है लड़की को<br />समाज से लड़ने, मरने के लिए<br />बचाने के लिए अपना सम्मान<br />फेंक दिया जाता है<br />किसी गटर में<br />सांसे देने से पहले<br />छीन ली जाती हैं सासें उसकी<br />पनपने से पहले<br />हो जाती है पूरी<br />मिट्टी में मिलने की क्रिया<br />अभी तो पहुंचा है मानव<br />चंद्रमा पर<br />तो गिरा है इतने नीचे<br />जब पहुंचेगा इसके आगे<br />और<br />होंगी नई खोजें<br />सम्भव है अनुमान लगाना<br />अपनी ऊंचाई का<br />पर पता नहीं लगेगा<br />उस स्तर का<br />जहां हम होंगे नीचे </div>वीना श्रीवास्तवhttp://www.blogger.com/profile/09586067958061417939noreply@blogger.com0