गुरुवार, 7 अक्तूबर 2010

नेतरहाट : सखुआ और चीड़ की जुगलबंदी..........वीना

वीना श्रीवास्तव

नेतरहाट को यदि नेचर हाट कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी। चीड़ और सखुआ के जंगल, नाशपाती के बागान, बादलों की सरपट दौड़ और शांत-मनोहारी माहौल व मौसम। रात को सखुआ के पत्तों पर एक बूंद भी गिरे तो आवाज सुनाई देती है। 3900 फुट की ऊंचाई पर बसा नेतरहाट किवदंतियों से भी भरा है। कोई भी आदमी आपको एक नया किस्सा सुना देगा।

30 सितंबर को हम लोग बात कर रहे थे कि झारखंड में रहते हुए एक साल हो गया और हम लोग अब तक झारखंड में कहीं नहीं गए। एक लंबा वीकेंड हमारे सामने था लिहाजा विचार शुरू हुआ कि कहां जाया जाए। बाबाधाम से शुरुआत हुई लेकिन दूरी 325 किमी थी लिहाजा दूसरे विकल्पों पर नजर डाली गई। मैथन डैम, तिलैया डैम, बेतला फारेस्ट पर बात करते-करते हम आए नेतरहाट पर। इस बीच राजेंद्र फोन करके रहने की व्यवस्था की जानकारी लेते रहे। नेतरहाट रांची से सिर्फ 140 किमी है और कार से जाने पर ज्यादा से ज्यादा चार घंटे का समय। लिहाजा तय हुआ कि नेतरहाट ही चलेंगे। राजेंद्र का पूरे झारखंड में अपना नेटवर्क है। उन्होंने लोहरदगा के एक पत्रकार साथी से नेतरहाट का फारेस्ट बंगला रिजर्व कराने को कहा लेकिन पता चला कि वहां जनरेटर नहीं है और पानी की भी दिक्कत है। अब दूसरा विकल्प था पलामू बंगला जो लातेहार जिला परिषद के नियंत्रण में है। लातेहार के एक वरिष्ठ पत्रकार साथी की मदद से यह बंगला दो दिन के लिए बुक कराया गया।









शुक्रवार को दोपहर एक बजे रांची से नेतरहाट के लिए निकलने की योजना बनी। हम तैयार थे कि राजेंद्र को याद आया कि अपनी दोनों कारों का इंश्योरेंस सितंबर में खत्म हो गया है। तो इंश्योरेंस रिन्यू कराने में थोड़ा समय लगा और हम ढाई बजे रांची से निकल पाए। रातू, मांडर और कुड़ू होते हुए हम करीब शाम 4 बजे लोहरदगा पहुंचे। रास्ता बहुत खराब था। कई जगह सड़क टूटी हुई थी लिहाजा समय ज्यादा लगा। हम लोगों ने सोचा था कि लंच कुडू के पास एक लाइन होटल में करेंगे लेकिन देर होने की वजह से हमने लंच ड्राप कर दिया। आपको बताते चलें कि इस इलाके में हाईवे पर स्थिति ढाबों को लाइन होटल कहते हैं। लोहरदगा में विभिन्न अखबारों के पत्रकार साथी मिले। वे राजेंद्र से जानना चाहते थे कि वह कौन सा अखबार ज्वाइन कर रहे हैं। दरअसल राजेंद्र हिंदुस्तान के झारखंड संपादक थे। पिछले दिनों स्थानांतरण की वजह से उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। इन पत्रकार साथियों ने हमारे लिए एक स्थानीय होटल में लंच की तैयारी कर रखी थी। इस आग्रह को टाला न जा सका लिहाजा और देर हो गई। चलते समय एक पत्रकार साथी भी हमारे साथ हो लिए। रात को नेतरहाट जाना जोखिम भरा माना जाता है क्योंकि आसपास का पूरा इलाका नक्सल प्रभावित है और थाना आदि उड़ाए जाने के किस्से यहां आपको डराने के लिए काफी हैं। लेकिन राजेंद्र ने कहा कि जब हम फरवरी 2002 में रात को एक बजे जम्मू-कश्मीर में उस समय के सबसे खतरनाक इलाके में स्थित गुलमर्ग जा सकते थे तो यहां क्या। फिर हम पत्रकार हैं, हमसे किसी की क्या दुश्मनी।
करीब 5.30 बजे हम लोहरदगा से नेतरहाट के लिए निकले। घाघरा पहंचते हुए अंधेरा छा गया और अभी हम करीब 60 किमी दूर थे। रास्ते में हमें सिर्फ बाक्साइट भरे ट्रक आते ही दिखाई दिए बाकी कोई आवागमन नहीं था। बिशुनपुर पार करते-करते पूरी तरह से अंधेरा हो गया। मुझे डर लग रहा था लेकिन मैं कुछ बोल नहीं रही थी। बनारी पार करने के बाद शुरू हुआ पहाड़ी रास्ता। भीगी सड़क देखकर लग रहा था कि यहां थोड़ी देर पहले बारिश हुई है। रास्ता बहुत अच्छा नहीं था। सड़क टूटी हुई थी और जगह-जगह पत्थर और कीचड़ था। हम ठीक सवा सात बजे नेतरहाट पहुंचे। राजेंद्र की ड्राइविंग की एक बार फिर दाद देनी होगी कि हम मानकर चल रहे थे कि आठ बजे नेतरहाट पहुंचेंगे लेकिन हम जल्दी पहुंच गए।

थोड़ा समय पलामू बंगला ढूंढ़ने में लगा। वहां महुआडांड़ के पत्रकार साथी लिली हमारा इंतजार कर रहे थे। उन्होंने हम लोगों को देखकर राहत की सांस ली। वहां के सेवक जीतन किसान ने बेहतरीन गरमा-गरम चाय हमें पिलाई। जो थोड़ी-बहुत थकान थी वह काफूर हो गई। नेतरहाट का सूर्योदय और सूर्यास्त बहुत खूबसूरत होता है और नेतरहाट इसके लिए जाना जाता है। जीतन ने बताया कि सूर्योदय पलामू बंगला प्रांगण में बने वाच टापर से ही देखा जा सकता है या फिर पास के प्रभात होटल से। हम लोगों ने तय किया सुबह वाच टावर पर सूर्योदय देखते हुए सुबह की चाय पिएंगे।

(जारी)

21 टिप्‍पणियां:

  1. VARNAN PARYAAPT ROOP SE SAJEEV HAI....LAG RAHAA HAI JAISE MAIN NETARHAAT HI PAHUNCH GAYAA

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  2. आदरणीया वीना जी,
    इस यात्रा वृत्तांत को पढ़ कर मेरा मन भी नेतर हाट घूमने का हो रहा है.बहुत रुचिकर अंदाज़ में आपने लिखा है.

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  3. खूबसूरती को बहुत सुन्दर कैद किया है

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  4. Very Interesting and spell bounding.Egarly waiting for next narration.
    Regards
    bhoj

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  5. आपका नेतर हाट यात्रा वृत्तांत पढ़ा और बिना गए ही हमने घर बैठे बैठे ही वहां की यात्रा कर ली.इसके लिए धन्यवाद.

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  6. नेतरहाट के बारे में जानकार अच्छा लगा.... अगली कड़ी का इंतज़ार रहेगा.

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  7. bahut gazab ka likha hai....
    Ek gaana yaad aa rahaa hai....
    kitna hansi hai mausam, kitna hansi safar hai

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  8. और कौन-कौन से राज खुलेंगे. इतना सुंदर वृतांत, इतना सुंदर चित्रण आप तो लेखन की हर कला में माहिर हैं। बहुत सुंदर। बधाई स्वीकारें

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  9. ये संस्मरण तो वीना दी बहुत अच्छा लिखा है। अगला कब पढ़ने को मिलेगा।

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  10. अशोक जी,यशवंत जी, संजय जी, भोज जी,विजय माथुर जी, शाहनवाज जी, विजय जी, शान जी और शालू जी आप सभी का दिल से आभार। आपकी टिप्पणियों से सही में उत्साह बढ़ता है। यशवंत जी आपका स्वागत है आप यहां आकर जरूर घूमिए....

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  11. बहुत ही इंटरेस्टइंगलि लिखा है आपने... एक सांस में पढ़ता ही चला गया...

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  12. वाह वाह वाह
    क्या खूब वर्णन है....

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  13. achha laga we dont know about many beautiful places in our country ... we know when som1 share expirences and can see/visit virtually that place by reading ...share complete Manoj Khushnuma noida

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  14. नेतरहाट वाकई में नेचर हाट है...हाँ रास्ते अब खराब हो गए हैं.. जो इस सम्पदा सम्पन्न राज्य कि बदहाली की गाथा कहते हैं. यात्रा वृत्तांत पढ़कर लग रहा है की मैं वहीँ जा रहा हूँ...अच्छा प्रयास... इसे पूरा करें...

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  15. वीणा जी, चित्र काफी खूबसूरत हैं । सुखुआ और चीड की जुगलबन्दी की प्रतीक्षा रहेगी । ।

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  16. आदरणीया वीना जी,इतना सुंदर वृतांत, इतना सुंदर चित्रण वाकई में क्या खूब वर्णन है.... बहुत रुचिकर अंदाज़ में आपने लिखा है.
    हमारी शुभकामनाये आपके साथ है,

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  17. यात्रा संस्मरण और फोटोग्राफी सभी चिताकर्षक हैं।

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  18. आप की ये वाली भी यात्रा मुझे बेहद पसंद आयी है

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  19. खूबसूरत चित्र.....
    बहुत सुन्दर यात्रा वृत्तांत...

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